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________________ प्रबोधिनी टीका पद ४ सू.०५ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां स्थितिनि० ४९१ न्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन द्वासप्ततिः वर्षसहस्राणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन द्वासप्ततिः वर्षसहस्राणि, अन्तमुहूर्तीनानि, गर्भव्युत्क्रान्तिकखेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पल्योपमस्य असंख्येयभागम्, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम! ( जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं बावत्तरी वाससहस्साई ) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की ( अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम! (जहणणेण वि उकोसेण वि अंतमुत्त) जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की ( पचतयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तों की कितनी ?) (गोयमा) हे गौतम ! ( जहपणेणं अंत्तोमुहुत्त, उक्कोसेणं बावत्तरीवा ससहस्साइं अंतोमुहुत्तणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बहत्तर हजार वर्ष की । (भवति खयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? ) गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति कितनी है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं पलिओ मस्स असंखेज्जइभागं ) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की ( अपज्जन्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? ( गोयमा !) हे गौतम! (जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत ) जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! ( जहणणेणं अंतोमुहुत्तं " मुहुत्तं, उक्कोसेणं बाबत्तरी वाससहस्साई ) ४धन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट मोंतेर उन्तर वर्षानी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अथर्यासोनी स्थिति डेंटली (गोयमा ! ) डे गौतम ! ( जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं धन्य ने उत्कृष्ट मन्त भुङ्क्र्तनी (रुज्जत्तयाणं पुच्छा) पर्यासोनी डेंटली ? (गोयमा ! ) हे गौतम! (जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण बाबत्तरी वाससहरसाईं अतोमुहुत्तूणाई) ४धन्य અન્તમુહૂર્તી ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂ આછા ખેતેર હજાર વર્ષની (गव्भवतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) गर्भ मेयर यथेन्द्रिय तिर्यथोनी स्थिति डेंटली ? (गोयमा !) डे गौतम ! ( जहण्णेण अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असं खेज्जइभागं ) ४६न्य अन्तर्मुहूर्तनी उत्कृष्ट ययोपभना असंख्यातमा लागनी ( अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तोनी स्थिति डेंटली ? (गोयमा ! ) डे गौतम ! ( जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अतोमुहुत्त ) ४धन्य શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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