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________________ જ૮૨ प्रज्ञापनासूत्रे तिर्यग्योनिकानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृप्टेन पूर्वकोटी, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटी अन्तर्मुहूत्र्लोना, संमूच्छिमजलचर पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटी, अपर्याप्तकानां उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की। (जलयरपंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की कितने काल की स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट करोड पूर्व को (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्यकोडी अंतोमुहुत्तूणा) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम कोटिपूर्व की। (समुच्छिम जलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) संमूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति की पृच्छा ?) (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुचकोडी) जघन्य अन्तત્રણ પાપની (जलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) म1पन् ! सय२ पयन्द्रिय तिय यानी मानी स्थिति सी छे ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी) ४३न्य मन्तभुत', Gष्ट ४२।७ पूना (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) १५र्यानी २छ। (गोयमा !) उ गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) धन्य ५५ अने अष्ट ५ मन्तभुत (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तानी स्थितिनी २७ ? (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण पुचकोडी अंतोमुहुत्तणा) धन्य અન્તર્મુહૂર્ત, ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત ઓછા કટિ પૂર્વની (समुच्चिम जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाण पुच्छा ?) सभूछि म ०८२२ पयन्द्रिय तिय यानी स्थिति छ। ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण पुव्वकोडी) धन्य मन्तभुत, SYष्ट पूर्व टिनी (अपज्जत्तयाण पुच्छा ?) २५५मिनी २७ ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहण्णेण શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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