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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०२ देवदेवीनां स्थितिनिरूपणम् ४५३ जघन्येन दशवर्षसहस्राणि, उत्कृष्टेन पञ्चपश्चाशत् पल्योपमानि, अपर्याप्तक देवीनां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थिति प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूतम् , उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम् , पर्याप्तकदेवीनां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूतौनानि, उत्कृष्टेन पंचपञ्चाशत् पल्योपमानि अन्तर्मुहूौनानि, भवनवासीनां देवानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि, उत्कृष्टेन सातिरेकं सागरोपमम्, अपर्याप्तकभवनवासिनां भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः की स्थिति कितने काल तक कही है ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहपणेणं दसवाससहस्साई) जघन्य दस हजार वर्ष की (उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई) उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की (अपज्जत्त य देवीणं भंते ! केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ?) अपर्याप्तक देवियों की हे भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तमुहूर्त की । (पज्जत्तय देवीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पर्याप्तक देवियों की भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की (उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की। __ (भवणवासीणं देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे
टसा समय सुधी ४ी छ ? (गोयमा ! ) 3 गौतम (जहण्णेणं दसवाससहस्साई) धन्य ६स हुन२ वर्षनी छ. (उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाई)
कृष्ट ५थापन पक्ष्या५मनी (अपज्जत्तय देवीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) २५पर्यात वियानी लगवन् ! टाण सुघी स्थिति
ही छ ? (गोयमा!) गौतम ! (जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं) धन्य ५९४ सन्तत सने कृष्ट ५ मन्तभूतनी (पज्जत्तग देवीणं भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पर्यात हवामान भगवन् ! सा समय सुधी स्थिति ४डी छ ? (गोयमा ) गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुतूणाई) धन्य अन्तभुत सौछ। ४स २ वर्षनी (उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) मतभुत छ। उत्कृष्ट ५ यापन पक्ष्या५मनी
(भवणवासीणं देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? सावन् ! लवन पासी हेवानी सा समय सुधी स्थिति ४डी छे ? (गोयमा जहण्णेणं दस
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨