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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०१ नैरयिकाणां स्थितिनिरूपणम् ४४७ सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतोनानि, अधः सप्तमपृथिवी नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन द्वाविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् सागरापमाणि, अपर्याप्तकाधःसप्तमपृथिवीनैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकाधःसप्तमपृथिवीनैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन द्वाविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूत्तौनानि, उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तोनानि ।। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम वाईस सागरोपम की है। __(अहे सत्तमापुढवीनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) सातवीं पृथिवी के नारकों को भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई) जघन्य वाईस सागरोपम, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम (अपज्जत्तग अहे सत्तमपुढवीनेरइयाणं) अपर्याप्तक सातवीं पृथ्वी के नारकों की (भंते !) भगवन् ! (केग्इयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) कितने काल की स्थिति कहीं कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहपणेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्जत्तग अहे सत्तम पुढवीनेरइयाणं) पर्याप्तक सातवीं पृथ्वी के नारकों की (भते) भगवन् ! (केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) कितने काल की स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं बाईसं सागरोवमाई अंतोमुहुनणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम (उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई
(अहे सत्तमा पुढवी नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) सातमी पृथ्वीना ना२नी साण सुधी स्थिति ४डी छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई) धन्य मावास सा॥२।५म, उत्कृष्ट तेवीस सा२।५म (अपज्जत्तगअहेसत्तमपुढवि नेरइयाणं) अपर्यास सातमी पृथ्वीना नानी (भंते ! ) भगवन् (केवइयं कालं टिई पण्णत्ता) हैटसा नी स्थिति ही छ ? (गोयमा!) ॐ गौतम ! (जण्णेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) ४३न्य ५ मत डूत, उत्कृष्ट ५५] मन्तमुंडूत (पज्जत्तग अहे सत्तम पुढवि नेरइयाणं) पर्यात सातभी पृथ्वीना ना२. जोनी (भंते !) भगवन् ! (केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) 24t onी स्थिति ही छ ? (गोयमा !) 0 गौतम ! (जहण्णेणं बाईस सागरोवमाइं अंत्तोमुहुत्तणाई) धन्य मन्तभुत मोछ। वीस सा॥१५म (उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨