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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ३ सु. ४० महादण्डकानुसारेण सर्वजीवाल्पबहुत्वम् ४१३ विशेषाधिकाः ८१, सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः ८२, सूक्ष्मपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः ८३, सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः ८४, सूक्ष्मपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः ८५ सूक्ष्मा विशेषाधिकाः ८६, भवसिद्धिका विशेषाधिकाः ८७ निगोदा जीवाः विशेषाधिकाः ८८, वनस्पतिजीवा विशेषाधिकाः ८९ एकेन्द्रियाः विशेषाधिकाः ९० तिर्यग्योनिका विशेषाधिकाः ९१, मिथ्या दृष्टयो विशेषाधिकाः ९२, अविरताः विशेषाधिकाः ९३ सकषायिणो विशेषाधिकाः ९४, छदमस्थाः विशेषाधिकाः ९५, सयोगिनो विशेषागुणा (बायर अपज्जत्तगा विसेसाहिया) बादर अपर्याप्त विशेषाधिक ( बायरा विसेसाहिया) बादर विशेषाधिक (सुहुम वणस्सइकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणा (सुम अपज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म अपर्याप्तक विशेपाधिक (हुम वणस्सइकाइया पज्जत्तया संखिज्जगुण 1) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त संख्यातगुणा (सुम पज्जन्त्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म पर्याप्त विशेषाधिक (सुहमा विसेसाहिया) सूक्ष्म जीव विशेबाधिक (भवसिद्धिया विसेसाहिया) भव्य विशेषाधिक (निगोयजीवा विसेसाहिया) निगोद जीव विशेषाधिक (वणस्सइ जीवा विसेसाहिया) वनस्पति जीव विशेषाधिक (एगिंदिया विसेसाहिया) एकेन्द्रिय विशेपाधिक (तिरिक्खजोणिया विसेसाहिया) तिर्यच विशेषाधिक (मिच्छादिट्ठी विसेसाहिया) मिथ्यादृष्टि विशेषाधिक (अविरया विसेसाहिया) अविरत विशेषाधिक (सकसाई विसेसाहिया) सकषाय जीव विशेपाधिक (छउमत्था विसेसाहिया) छदमस्थ विशेषाधिक (स जोगी गा छे. (बायर अपज्जत्तगा बिसेसाहिया) माहर पर्यास विशेषाधि छे. (बायरा विसेसाहिया) माहर विशेषाधि४ छे. (सुहुम वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अस खेज्जगुणा) सूक्ष्म वनस्पतिायि अपर्याप्त असं ध्यातगा छे. (सुहुम अपज्जत्तया विसे. साहिया) सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधि छे. (सुहुम वणस्सइकाइया पज्जत्तया संखि ज्जगुणा ) सूक्ष्म वनस्पति अयि पर्याप्त संख्यातगा छे. (मुहुम पज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म पर्याप्त विशेषाधिः छे. ( सुहुमा विसेसाहिया) सूक्ष्म व विशेषाधि (भवसिद्धिया विसेस (हिया) लव्य विशेषाधिक छे. (निगोयजीवा विसेसाहिया) निगोह का विशेषाधिः छे. (वणस्सइजीवा विसेसाहिया) वनस्पति व विशेपाधि छे. (एगिंदिया विसेसाहिया) मेहेन्द्रिय विशेषाधि४ छे. (तिरिक्खजोणिया विसेस (हिया) तिर्यय विशेषाधि छे. (मिच्छादिठि विसेसाहिया) मिथ्यादृष्टि विशेषाधिः छे. (अविरया बिसेस हिया) अविरत विशेषाधि छे. ( सकसाई विसे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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