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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.२६ धर्माधर्मास्तिकायादि जीवाल्पबहुत्वम् २३९ सर्वस्तोको जीवास्तिकायः प्रदेशार्थतया अनन्तगुणा पुद्गलास्तिकायः प्रदेशार्थतया अनन्तगुणः, अद्धासमयः प्रदेशार्थतया अनन्तगुणः, आकाशास्तिकायः प्रदेशार्थतया अनन्तगुणः, एतस्य खलु भदन्त ! धर्मास्तिकायस्य द्रव्यार्यप्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्योऽल्पावा, बहुकावा, तुल्या वा, विशेषाधिकाः वा ? गौतम ! सर्वस्तोकः एको धर्मास्तिकायो द्रव्यार्थतया, सचैव प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणः हे गौतम ! (धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए एए णं दोषि तुल्ला पए. सट्टयाए सव्वत्थोवा) धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय, ये दोनों परस्पर तुल्य हैं और प्रदेशों से सबसे अल्प हैं (जीवस्थिकाए पएसट्टयाए अणंतगुणे) जीवास्तिकाय प्रदेशों से अनन्तगुणा हैं (पोग्गलत्थिकाए पएसट्टयाए अणंतगुणे) पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणित है (उद्धासमए पएसट्टयाए अणंतगुणे) अद्धासमय प्रदेशों की अपेक्षा अनन्त गुणा है (आगासत्थिकाए पएसट्टयाए अणंतगुणे) आकाशास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणा है।
(एयस्सणं भंते !) हे भगवन् ! इस (धम्मत्थिकायस्स) धर्मास्तिकाय के (दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवे एगे धम्मत्थिकाए दवट्टयाए) सबसे अल्प एक
(गोयमा !) हु गौतम ! (धम्मस्थिकाए अधम्मत्थिकाए एए णं दो वि तुल्ला पएसट्टयाए सव्वत्थोवा) धर्मास्ति४ाय मने मास्तिय ते पन्ने ५२२५२ स२॥ छ भने प्रशाथी माथी २८५ छे (जीवस्थिकाए पएसट्टयाए अणंतगुणे) ७. स्तिय प्रदेशानी अपेक्षाथी मनन्त छ (पोग्गलस्थिकाए पएसट्टयाए अणंतगुणे) पुस्तिय प्रशानी अपेक्षा अनन्तशुणित छ (अद्धासमए परसदृयाए अणंतगुणे) मद्धासमय प्रशानी अपेक्षारी मनन्त छ (आग,सत्थिकाए पएसट्टया अणंतगुणे) २मास्तिय प्रदेशानी अपेक्षाये मनन्ता छ !)
(एयस्स णं भंते !) 3 लावन् ! २॥ (धम्मत्थिकायस्स) घास्तियना (दव्वदुपएसट्टयाए) द्रव्य मने प्रदेशानी अपेक्षाये (कयरे कयरेहितो) र
थी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेस हिया वा) २६५, ५, तुल्य અથવા વિશેષાધિક છે? )
(गोयमा !) 3 गौतम ! (सव्वत्थोवे एगे धम्मत्थिकाए दव्वट्ठयाए) माथा मोछ। मे४ घस्तिय छ, द्रव्यनी अपेक्षाये (से चेव पएसट्टयाए असंखेज्जगुणे) પ્રદેશની અપેક્ષાએ તેજ અસંખ્યાતગણ છે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨