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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.८ सूक्ष्मबादरजीवाल्पबहुत्वम् १५७ प्कायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, सूक्ष्मवायुकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, सूक्ष्मनिगोदाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः अनन्तगुणाः, बादरपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, सूक्ष्म पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, एतेषां खलु भदन्त ! सूक्ष्माणां बादराणाश्च पर्याप्तापर्याप्तकानां कतरे करेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः बादराः पर्याप्तकाः, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं (सुहम आउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं (सुहम वाउकापया पज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं (सुहुम निगोदा पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म निगोद के पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (बायरवणस्सइकाइया पज्जत्तया अणंतगुणा) बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त अनन्तगुणा हैं (बायर पज्जत्तया विसेसाहिया) बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं (सुहुम वणस्सइकाइया पज्ज. त्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तक असंख्यातगुणा है (सुहुम पजत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक हैं। (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (सुहमाणं बायराण य पज्जत्तापज्जत्ताणं) सूक्ष्म और वादर जीवों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा बायरा पज्जत्तया) सब से कम बादर पर्याप्तक हैं (बायरा अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर अपर्याप्तक यी ४५४ पर्यात विशेषाधि४ छ (सुहुमआउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म यि पर्याप्त विशेषाधि४ छ (सुहुमवाउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म पाययि४ पर्यात विशेषाधि छे (सुहुमनिगोदा पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म निगाहना पर्यात मसण्यातगए। छ (बायरवणस्सइकाइया पज्जत्तया अणंतगुणा) पाई२ पनस्पतिथि: ५र्यात मनन्त छ. (वायरपज्जत्तया बिसेसाहिया) माहर पर्यात विशेषाधि४ छ (सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म पनस्पतिशायि पर्यात असण्यात छ (सुहुमपज्जत्तया विसेसाहिया) सक्षम પર્યાપક વિશેષાધિક છે. (एएसिणं भंते !) उलगपन ! २॥ (सुहमाणं बायराणं य पज्जत्तापज्जत्ताणं) सूक्ष्म अने मा६२ ७वाना पर्यात अने २५५तिभा (क्रयरे कयरेहिंतो) एy अनाथी (अप्पा वा बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) २५६५, घ, तुल्य अथवा विशेषाधि छ ? (गोयमा !) गौतम ! (सव्वत्थोवा बायरा पज्जत्तया) माथी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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