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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.८ सूक्ष्मबादरजीवाल्पबहुत्वम् १५१ गुणाः, प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिका असंख्येयगुणाः, बादरनिगोदाः असंख्येयगुणाः, बादरपृथिवी कायिकाः असंख्येयगुणाः, बादराष्कायिकाः असंख्येयगुणाः, बादरचायुकायिका असंख्येयगुणाः, सूक्ष्मतेजः कायिका असंरूयेयगुणाः, सूक्ष्मपृथिवी कायिकाः विशेषाधिकाः, सूक्ष्माष्कायिका विशेषाधिकाः, सूक्ष्मवायुकायिका विशेषाधिकाः, सूक्ष्मनिगोदा असंख्येयगुणाः, बादरवनस्पतिकायिका अनन्तगुणाः, बादराः विशेषाधिकाः, सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः अनन्ततेजस्कायिक असंख्यातगुणा हैं ( पन्तेयसरीर वायरचणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा ) प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक असंख्यातगुणा हैं (बायर निगोया असंखेजगुणा) बादर निगोद असंख्यातगुणा हैं (बायर पुढवीकाइया असंखेजगुणा) बादर पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं (बायर आउकाइया असंखे जगुणा) बादर अष्कायिक असंख्यात गुणा हैं (बायर वाउकाइया असंखेजगुणा) बादर बायुकायिक असंख्यातगुणा हैं (सुहम तेउकाइया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म तेजस्कायिक असंख्यातगुणा हैं (सुहुम पुढवीकाइया विसेसाहिया) सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं (सुहुम आउकाइया विसेसाहिया) सूक्ष्म अष्कायिक विशेषाधिक हैं (सुम वाउकाइया विसेसाहिया) सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं (सुहुम निगोया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म निगोद असंख्यातगुणा हैं (बाघर वणस्सइकाइया अनंतगुणा) बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुणा हैं (बायरा विसेसाहिया) बादर विशेषाधिक हैं ( सुहुम वणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक असंख्यातगुणा हैं (सुमा विसेसाहिया) सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं । (पत्तेयसरी रब यरवणरस इकाइया असंखेजगुणा ) प्रत्ये शरीर महर वनस्पतिप्रायिक अस ंज्यातगणा छे. (बायरनिगोया असंखेज्जगुणा ) माहर निगोद असंख्यातशशु छे (बार पुढवीकाइया असंखेज्जगुणा ) माहर पृथ्वी अयि असण्यात छे (बायर आउकाइया असंखेज्जगुणा) माहर जायि असण्यातगया है. (बायरवाउकाइयाअसंखेज्जगुणा ) माहर वायुअयि असं ज्यातगुणा छे (सुहुमते उकाइया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म तेनायि असंख्यातगा छे (सुडुमपुदवीकाइया विसेसाहिया) सूक्ष्म पृथ्वीय विशेषाधि छे. ( सुहुम आउकाइया विसेसाहिया) सूक्ष्म जायि विशेषाधिं छे (सुहुमवा उकाइया विसेसाहिया) सूक्ष्म वायुअयि विशेषाधिपु छे (सुहुमनिगोया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म निगोह असंख्यात छे (बायरवणस्स इ. काइया अर्णतगुणा) बाहर वनस्पति अयि अनंतगण छे (बायरा विसेसाहिया) हर विशेषाधिङ छे. ( सुहुमवणरसइकाइया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म वनस्पतिप्रायिक શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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