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________________ क्रमांक १-८ is me ao & wo vor प्रज्ञापनासूत्र भाग दूसरे की विषयानुक्रमणिका विषय पृष्ठांक तीसरा पददिशाके अनुपात से अल्पबहुत्ध का कथन विशेष प्रकार के जीवों का अल्पबहुत्वकयन ९-४७ गतिद्वारको लेकर अल्प बहुत्वका कथन ४८-५ सेन्द्रियजीवों का निरूपण ५४-७१ कायद्वार का निरूपण ७२-९२ सूक्ष्म एवं बादरकायका निरूपण ९३-११५ बादर जीवों के अल्प बहुत्व का कथन ११६-१४७ सूक्ष्म एवं बादर जीयों के अल्पबहुत्व कथन १४८-१६९ सूक्ष्मवादर पृथ्विकायिकादिजीवों के अल्प बहुत्व का कथन १७०-१९० लेश्यावाले एवं विनालेश्यावाले जीवों के अल्पबहुत्व का कथन १९१-२०४ सम्यगदृष्टि एवं मिथ्यादृष्टियाले जीवों के अल्पबहुत्व का कथन २०५-२०६ ज्ञानी एवं अज्ञानी जीवों के अण्पबहुत्व का कथन २०७-२१४ संयत एवं असंयतजीवों के अल्पबहुत्व का कथन २१५-२२० उपयोगवाले जीवों के अल्पवहुत्य का कथन २२१ आहारक अनाहारक जीवों के अल्पबहुत्व का कथन २२२-२२३ भाषक, अभाषक एवं परीतापरीत जीवों के अल्प बहुत्य का कथन २२४-२३१ सूक्ष्म एवं बादरादि एवं संज्ञी असंज्ञी जीयों का अल्पबहुत्व २३२-२३३ भव्याभव्यादि का स्वरूप २३४-२३५ धर्माधर्मास्तिकाय जीवों के अल्प बहुत्वका निरूपण २३६-२५८ जीव एवं पुद्गल के अल्प बहुत्य का कथन २५९-२६३ क्षेत्रानुसार जीय पुद्गलों का निरूपण २६४-२६६ क्षेत्रानुसार नैरयिकों के अल्पबहुल का विचार २६७-२८५ भयनपति देवों के अल्प बहुत्व का निरूपण २८६-३०९ क्षेत्रानुसार द्वीन्द्रियादिका अल्पबहुत्य ३१०-३२५ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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