SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ प्रज्ञापनासूत्रे निगोदा पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! सूक्ष्माणां, सूक्ष्मपृथिवीकायिकानां सूक्ष्माप्कायिकानाम, सूक्ष्म तेजस्कायिकानां, सूक्ष्मवायुकायिकानां, सूक्ष्मवनस्पतिकायिकानां सूक्ष्मनिगोदानाञ्च पर्याप्तापर्याप्तानां कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः सूक्ष्म तेजस्कायिकाः अपर्याप्तकाः सूक्ष्मपृथिवीकायिका अपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, सूक्ष्मा कायिकाः अपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, सूक्ष्मवायुकायिकाः अपर्याप्तकाः सबसे कम सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त हैं (सुहुम निगोया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा) सूक्ष्म निगोद के पर्याप्त संख्यात गुणा हैं। (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (सुहुमाणं) सूक्ष्म (सुहुम पुढविकाइयाणं) सूक्ष्म पृथिवीकायिक (सुहुम आउकाइयाणं) सूक्ष्म अप्कायिक (सुहुम तेउकाइयाणं) सूक्ष्म तेजस्कायिक (सुहुम वाउकाइयाणं) सूक्ष्म वायुकायिक (सुहुम वणस्सइकाइयाणं) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक (सुहुम निगोदाण य) और सूहम निगोद के (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्तों तथा अपर्याप्तों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा या बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्यस्थोवा सुहुम तेउकाइया अपज्जत्तगा) सब से कम सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त हैं (सुहम पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (सुहम आउकाइया अपज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म अप्कायिक अपर्यास विशेषाधिक हैं (सुहुम चाउकाइया अपज्जत्तगा (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ) PA६५, पण तुझ्य 24241 विशेषाधि छ (गोयमा) 3 गौतम! (सव्वत्थोवा सुहुम निगोया अपज्जत्तगा) साथी सोछ। सूक्ष्म निगोहना २५५र्याप्त छ (सहुम निगोया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा) सूक्ष्म निगाहना पर्यात सध्यात गुष्ा छ (एएसिणं भंते ! ) 3 मावन् ! २0 (सुहुमाणं) सूक्ष्म (सुहुम पुढविकाइयाणं) सक्षम वी४ि (सुहम आउकाइयाणं) सूक्ष्म य (सुहुम तेउकाइयाणं) सूक्ष्म ते४४५४ (सुहुम वाउकाइयाणं) सूक्ष्म वायुय (सुहुम वणस्सकाइयाणं) सूक्ष्म वनस्पतिथि: (सुहुम निगोहाणय) मने सूक्ष्म निगडना (पज्जत्तापज्जताणं) पर्याप्तो तथा मर्याप्तीमा (कवरे कयरेहितो) ४ जनाथी (अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) २५६५, घा, तुल्य २१२ विशेषाधिक छ ? (गोयमा) 3 गौतम ! (सव्वत्थोवा सुहुम तेउकाइया अप्पज्जत्तगा) साथी और सक्षम ते॥२४॥यि मर्यात छ (सहुम पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) सूक्ष्म पृथिवी४ि भयोस विशेषाधि छे (सुहम आउकाइया अपज्ज શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy