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________________ ११२६ प्रज्ञापनासूत्रे अन्तरद्वीपजमनुष्येषु असंख्येयवर्पायुष्केष्वपि एते उपपद्यन्ते ! इति भणितव्यम्, यदा देवेषु उपपद्यन्ते किं भवनपतिषु उपपद्यन्ते, यावत्-किं वैमानिकेष उपपद्यन्ते? गौतम ! सर्वेषु चैव उपपद्यन्ते, यदा भवनपतिषु किम् असुरकुमारेषु उपपद्यन्ते, यावत् स्तनितकुमारेषु उपपद्यन्ते ? गौतम ! सर्वेष चैव उपपद्यन्ते, एवं वानव्यन्तर उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! दोसु वि) गौतम ! दोनो में ही (एवं जहा उयवाओ तहेव उच्चट्टणावि भाणियवा) इस प्रकार जैसा उपपात कहा वैसी उद्वत्तना भी कहनी चाहिए (नवरं) विशेष (अकम्मभूमगगन्भवतियमणुस्सेसु) अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में अन्तरदीवगगभवक्कंतियमणुस्सेसु असंखेज्जवासाउएप्लु वि एते उववज्जतित्ति अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों में तथा असंख्यात वर्ष की आयु वालों में भी ये उत्पन्न होते हैं ऐसा (भाणियब्व) कहना चाहिए _ (जइ देवेलु उववज्जति) यदि देवों में उत्पन्न होते हैं (किं भवणवईसु उपवज्जति) क्या भवनपतियों में उत्पन्न होते हैं ? (जाव किं वेमाणिएसु उववज्जति ?) यावत् क्या वैमानिकों में उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! सव्वेसु चेव उववज्जति) गौतम ! सभी में उत्पन्न होते हैं (जइ भवणवईसु किं असुरकुमारेसु उववति जाव थणियः कुमारेसु उववज्जंति ?) यदि भवनपतियों में उत्पन्न होते, हैं तो क्या असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं यावत् स्तनितकुमारों में उत्पन्न होते हैं (गोयमा ! सब्वेसु चेव उववज्जति) गौतम ! सभी में उत्पन्न होते हैं (एवं वाणमंतरजोइसियवेमाणिएसु निरंतरं उववज्जति) इसी दोसु वि) 3 गौतम ! भन्नेमा (एवं जहा उववाओ तहेव उवट्टणा वि भाणियब्बा) से शते रेव पात हो छ. तेपी पतन। ५ वी नये. (नवरं) विशेष (अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेसु) मम भूमि म भनुध्यामा (अंतरदीवगगब्भवतिय मणुस्सेसु असंखेज्जवासाउएसु वि एते उववज्जति वि) અન્તર દ્વીપજ ગર્ભજ મનુષ્યમાં તથા અસંખ્યાત વર્ષની આયુવાળાઓમાં पण ते उत्पन्न याय छे. सम (भाणियव्वं) डेवुन (जइ देवेसु उववज्जति) वोमा ५न्न थाय छे. (किं भवणवईस उववज्जति) | सपनपतियामा अत्यन्न थाय छ ? (जाव किं वेमाणिएसु उववज्जंति ?) यावत् शुवैमानिकीमा ५न्न थाय छ ? (गोयमा! सव्वेसु चेत्र उववज्जति) गौतम ! अधामा उत्पन्न याय छे. (जइ भवणवईसु किं असुरकुमारेसु उववज्जंति जाव थणियकुमारेसु उववज्जंति ?) ने भवनपतियोमा उत्पन्न याय છે તે શું અસુરકુમારેમાં ઉત્પન થાય છે. યાવત્ સ્વનિતકુમારમાં ઉત્પન્ન थाय छ ? (गोयमा ! सव्वेसु चेव उववज्जति) गौतम! मघामा ५-न याय શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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