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प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू.१२ वैमानिकदेवोपपातनिरूपणम्
संयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्त केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ? अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टिपर्यासकेभ्यः उपपद्यन्ते, नो प्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्यः उपपद्यन्ते, अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते किम ऋद्धि प्राप्तसंयतेभ्यः ? अवृद्धि प्राप्तसंयतेभ्यः उपपद्यन्ते ? गौतम ! द्वाभ्याम् उपपद्यन्ते द्वारम् ||१२||
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टीका-अथ वैमानिकदेवानामुत्पादवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-वेमाणिया णं भंते ! ओहिंतो उववज्जंति ? हे भदन्त ! वैमानिकाः खलु देवाः केभ्य उपपसंजयसम्म टिपिज्जन्तएहिंतो अप्पमत्तसंजय सम्मद्दिद्विपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति ?) क्या प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से अथवा अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्यानकों से उत्पन्न होते हैं ?) गोयमा ! अप्प" मत्तसंजयसम्मदिद्विपज्जन्तएहिंतो उववज्र्ज्जति पमतसंजयसम्मद्दिट्टिपज्जतएहिंतो उववज्र्ज्जति) गौतम ! अप्रमत्तसंयत सम्मग्डष्टिपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, प्रमत्तसंगत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तको से नहीं उत्पन्न होते
(जइ अप्पमत्त संजयसम्मदिपिजत्तएहिंतो उववज्जंति) यदि अप्रमत्त सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं (किं इडिपत्तसंजए हिंतो, अणिपित्तसंजए हिंतो उववज्र्ज्जति ) क्या ऋद्धिप्राप्त संयतो से उत्पन्न होते हैं अथवा अद्विप्राप्त संयतों से उत्पन्न होते हैं (गोयमा ! दोहितो उववज्जति) गौतम ! दोंनों से उत्पन्न होते हैं) द्वार समाप्त ।
टीकार्थ - अब वैमानिक देवों के उपपात की वक्तव्यता कहते हैंगौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! वैमानिक देव किनसे उत्पन्न
अप्पमत्त संजयसम्म द्दिट्ठिपज्जत्तएहि तो उववज्जंति ?) शुं प्रभत्तसंयत सभ्यग्दृष्टि પર્યાપ્તકાથી અથવા અપ્રમત્તસયત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્તકાથી ઉત્પન્ન થાય છે ? ( गोयमा ! अप्पमत्त संजयसम्मदिद्विपज्जत्तएहि तो उबवज्जति, नो पमत्त संजयसम्म - दिट्टि पज्जत्तएहिं तो उववज्जति) गौतम ! अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त अथी ઉત્પન્ન થાય છે. પ્રમત્ત સયત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્તકાથી નથી ઉત્પન્ન થતા.
( जइ अप्पमत्त संजयसम्मदिट्टि पज्जत्तएहिं तो उववज्जति) यहि अप्रभत्त संयत सभ्य दृष्टि पर्याप्त अथी उत्पन्न थाय छे. (किं इढिपत्त संजएहिं तो, अणिढिपत्तसंजएहि तो उववज्जंति ? ) शु ऋद्धिप्राप्त संयतोभांथी उत्पन्न थाय छे अथवा समृद्धि प्राप्त संयताभांथी उत्पन्न थाय छे ? ( गोयमा ! दोहिं तो उववज्जंति ) गौतम ! अन्नेथी उत्पन्न थाय छे. द्वारयह समाप्त ॥ १२ ॥
ટીકા :-હવે વૈમાનિક દૈયાના ઉપપાતની વક્તવ્યતા કહે છે. શ્રી ગૌતમ સ્વામી પ્રશ્ન કરે છે:-ભગવન વૈમાનિક દેવ કાનાથી ઉત્પન્ન થાય છે? શું
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨