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________________ - प्रमेयबोधिनी टोका पद ६ सू.११ पञ्चेन्द्रियतियग्योनिकाद्युपपातनि० १०८१ मनुष्येभ्यो देवेभ्य उपपद्यन्ते ? येभ्योऽसुरकुमारास्तेभ्यो भणितव्याः, ज्योतिष्काः खल भदन्त ! देवाः केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! एवश्चेव, नवरम् संमूच्छिमसं. ख्येयवर्षायुष्कखेचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकवर्जेभ्यो ऽन्तरद्वीपमनुष्यवर्जेभ्यः उपपा. तयितव्याः ॥सू० ११॥ ___टीका-अथ पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकादीनामुपपातवक्तव्यता प्ररूपयितुमाह-पंचिं (वाणमंतरदेवा णं भंते ! कओहिंतो ऊवयति ?) भगवन् ! वानव्यन्तर देव किनसे उत्पन्न होते हैं ? (किं नेरइएहितो) क्या नार कों से ? (तिरिक्खजोणिएहितो) तिर्यचों से (मणुस्सेहितो) मनुष्यों से ? (देवहितो) देवों से ? (उववज्जति) उत्पन्न होते हैं ? गोयमा !) हे गौतम ! (जेहिंतो असुरकुमारा तेहिंतो भणियव्या) जिनसे असुरकुमार उत्पन्न होते हैं उनसे वानव्यन्तरों का उपपात कहना चाहिए (जोइसिया णं भंते ! देवा कओहिंतो उववज्जति ?) हे भगवन् ! ज्योतिष्क देव किनसे उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (एवं चेव) (इसी प्रकार (नवरं) विशेष संमुच्छिम असंखिज्जवासाउयखहयर पंचिं. दियरिक्खजोणियवज्जेहिंतो) संमूर्छिम असंख्यात वर्ष की आयु वाले खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों को छोड कर (अंतरदीवमणुस्सवज्जेहिंतो) अन्तरद्वीपों के मनुष्यों को छोड कर (उववज्जावेयव्वा) उत्पन्न होना कहना चाहिए टीकार्थ-अब पंचेन्द्रिय तिर्यंचो आदि के उपपात की वक्तव्यता (वाणमंतर देवाणं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ?) ७ मावन् ! पानयत२ व नाथी उत्पन्न थाय छे ? (किं नेरइएहिंतो) शुनारथी (तिरिक्खजोणिए हिंतो) तिय याथी (मणुस्सेहितो) मनुष्याथी (देवेहिंतो) हेवोथी (उववज्जंति) उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जेहिंतो असुरकुमारा तेहिंतो भाणियव्वा) જેમનાથી અસુરકુમાર ઉત્પન્ન થાય છે, તેમનાથી વાતવ્યન્તરેને ઉપપાત કહેવું જોઈએ (जोइसियाणं भंते : देवा कओहिंतो उववजंति ?) ॐ भगवन् ! ज्योति हे नाथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा !) 3 गौतम! (एवं चेव) से प्रारे (नवरं) विशेष (संमुच्छिम असंखिज्जवासाउयखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिय. वज्जेहिंतो) सभूछि असभ्यात वर्षनी आयुवामा मेयर पयन्द्रिय तिययोना सिवाय (अंतरदीव मणुस्सवज्जेहिं तो) मन्त२ दीवाना मनुष्याने त्याने (उववज्जावेयव्वा) ५पात ४ नये. ટીકાર્થ-હવે પંચેન્દ્રિય તિર્યએ વિગેરેના ઉપપાતની વક્તવ્યતાની પ્રરૂप्र० १३६ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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