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________________ - - - - १०३२ प्रज्ञापनासूत्रे गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, यदि पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कर्म भूमिगेभ्य उपपद्यन्ते किं स्त्रीभ्य उपपद्यन्ते, पुरुषेभ्य उपपद्यन्ते, नपुंसकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! स्त्रीभ्य उपपद्यन्ते, पुरुषेभ्यः उपपद्यन्ते, नपुंसकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, अधःसप्तमपृथिवीनैरयिका खलु भदन्त ! केभ्य हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वालों से नहीं उत्पन्न होते हैं। (जइ संखे. ज्जवासाउएहितो उववज्जंति) यदि संख्यात वर्ष की आयु वालों से उपन्न होते हैं (किं पज्जत्तएहिंतो उववज्जति, अपज्जत्तएहितो उववज्जति) क्या पर्याप्तकों से उतपन्न होते हैं या अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति) हे गौतम ! पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते। (जइ पज्जत्तग संखेज्जवासाउयकम्मभूमिएहिंतो उववज्जति) यदि पर्यासक, संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिजों से उत्पन्न होते हैं। (किं इथिएहिंतो उववज्जंति?) क्या स्त्रियों से उत्पन्न होते हैं ? (पुरिसेहितो उववज्जति) पुरुषों से उपन्न होते हैं ? (नपुंसएहितो उववज्जंति) नपुंसकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! इत्थीहितो उववज्जति) हे गौतम ! स्त्रियों से उत्पन्न होते हैं । (पुरिसेहितो उववज्जति ?) पुरुषों से उत्पन्त होते हैं (नपुंसएहिंतो वि उववति) नपुंसकों से भी उत्पन्न होते हैं। (अहे सत्तमा पुढविनेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ?) उववजंति) यहि सभ्यात १५नी मायुवामाथी उत्पन्न थाय छे (कि पज्जत्तए हिंतो उववज्जति, अपज्जत्तएहिं तो उववज्जति) शुपतिथी अत्पन्न थाय छ मा२ अपर्याप्त थी 4न्न थाय छ ? (गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जंति. नो अपज्जत्तएहितो उववज्जंति) 3 गौतम ! पर्याप्तीथी उत्पन्न थाय छे, अ५ર્યાસકોથી નથી ઉત્પન્ન થતા (जइ पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमिएहिं तो उववज्जति) यह पर्या, सन्यात वर्षनी सायुवाणा मभूभिन्नथी उत्पन्न थाय छ ? (किं इथिए हितो उववज्जति ?) शुखीसाभाथी ५न्न थाय छ ? (पुरिसेहितो उववज्जत्ति ?) पोथी 64न याय छ ? (नपुंसरहिं तो उववजंति) नसीथी उत्पन्न थायछ ? (गोयमा ! इत्थीहितो उववज्जंति) गौतम ! श्रीमाथी उत्पन्न थाय छ (पुरिसेहितो उपवति) ३षोथी उत्पन्न थाय छ (नपुसए हि तो वि उववज्जंति) नपुंसीथी ५५५ ५न्न थाय छे (यहे सत्तमापुढवि नेरइयाणं भंते ! कओहितो उववजंति ?) माससमी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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