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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सु. ९ उरपरिसर्पादीनामेकसमयेनोपपात नि० १०३१ किं कर्मभूमिगेभ्य उपपद्यन्ते, अकर्मभूमिगेभ्य उपपद्यन्ते, अन्तरद्वीपेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! कर्मभूमिगेभ्य उपपद्यन्ते, नो अकर्मभूमिकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अन्तरद्वीपेभ्य उपपद्यन्ते, यदि कर्मभूमिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं संख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते, असंख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! संख्येयवर्षायुष्केम्य उपपद्यन्ते, नो असंख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते, यदि संख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते किं पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते ? (जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति) यदि मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । (किं कम्भूमिएहिंतो उववज्र्ज्जति) क्या कर्मभूमिजों से उत्पन्न होते हैं ! ( अकम्मभूमि एहिंतो उववज्जंति) अकर्मभूमिजों से उत्पन्न होते हैं । (अंतरदीव एहिंतो उववज्जंति ?) अन्तर द्वीपजों से उत्पन्न होते हैं ? ( गोयमा ! कम्मभूमि एहिंतो उववज्जति) हे गौतम! कर्मभूमिजों से उत्पन्न होते हैं, (नो अकम्भूमिएहिंतो उववज्जंति) अकर्मभूमिजों से उत्पन्न नहीं होते (नो अंतरदीव एहिंतो उबवज्जंति ) अन्तर द्वीपजों से उपन्न नहीं होते । (जइ कम्मभूमि एहिंतो उववज्जंति) यदि कर्मभूमिजों से उपन होते हैं। (किं संखेज्जवा साउएहिंतो उबवज्जंति, असंखेज्जा वासाउएहिंतो उववज्जति ?) क्या संख्यात वर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! ( संखेज्जवासाउ एहिंतो उववज्जंति नो असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्र्ज्जति ) संख्यातवर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते ( जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति) ले मनुष्योथी उत्पन्न थाय छे (किं कम्म - भूमिएहिंतो उववज्जति) शुं उर्भ भूमिलेयी उत्पन्न थाय छे ( अकम्मभूमिए हिंतो उववज्जंति) अम्भ भूभिलेथी उत्पन्न थाय छे (अंतरदीवएहिंतो उववजंतिं ?) अन्तर द्वियन्थी उत्पन्न थाय छे (गोयमा ! कम्मभूमि एहिंतो उववज्जंति) हे गौतम! उर्भलुभिलेथी उत्पन्न थाय छे (नो अकम्मभूमिएहिंतो उववज्र्ज्जति) अर्भ भूमि. लेथी उत्पन्न थता नथी (नो अंतर दीवहिंतो उववज्जंति) अ ंतर द्वीपलेथी ઉત્પન્ન નથી થતા . ( जइ कम्मभूमिए हिंतो उववज्र्ज्जति) यहि भूभिलेथी उत्यन्न थाय छे (किं संखेज्जवासाउएहिं तो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति) शु सभ्यात વર્ષની આયુવાળાથી ઉત્પન્ન થાય છે અથવા અસખ્યાત વર્ષની આયુવાળાથી उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा !) हे गौतम! ( संखेज्जवासाउएहिं तो उववज्र्ज्जति, नो असं वेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति ) संख्यात वर्षांनी आयुषाणाथी उत्पन्न थाय छे, असण्यात वर्षाना आयुवाणाखोथी नथी उत्पन्न थता (जइ संखेज्जवासाउएहिं तो શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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