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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२९ सिद्धानां स्थानादिकम्
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निष्कङ्कटच्छाया सप्रभा सश्रीका सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा, ईषत्प्राग्भारायाः खलु पृथिव्याः निःश्रेणिगत्या योजने लोकान्तः तस्य खलु योजनस्य यत् तत् उपरिमं गभ्यूतम् तस्य खलु गव्यूतस्य योऽसौ उपरिमः षड्भागे, अत्र खलु सिद्धाः भगवन्तः सादिकाः अपर्यवसिताः, अनेक जाति जरामरणयोनिसंसारकलङ्कलीभाव पुनर्भव गर्भवासवसति प्रपञ्चसमतिक्रान्ताः शाश्वतम् अनागतं कालं तिष्ठन्ति तत्रापि च ते अवेदाः अवेदनाः निर्ममाः, कोमल (घट्टा ) घृष्ट-घिसी हुई-सी (मट्ठा) भृष्ट (नीरया) रज से रहित (निम्मला) निर्मल (निप्पंका) पंक रहित (निक्कंकडच्छाया) निष्कवच कान्ति बाली (सप्पभा) प्रभायुक्त (सस्सिरीया) श्रीसम्पन्न (सउज्जोया) प्रकाशमय (पासाईया) प्रसन्नताप्रद ( दरिसणिजा ) दर्शनीय (अभि
बा) अभिरूप - सुन्दर (पडिरुवा) सर्वांग सुन्दर रूप वाली (इसीपन्भाराए णं पुढवीए) ईषत्प्राग्भार पृथिवी से (सीआए) निश्रेणी गति से (जोयणम्मि) एक योजन पर (लोगंतो ) लोक का अन्त है (तस्स णं जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए) उस योजन का जो ऊपरी गव्यूति है ( तस्स णं गाउअस्स जे से उवरिल्ले छन्भागे) उस गव्यूति का जो ऊपरी छटा भाग है ( एत्थ णं) यहां (सिद्धा भगवंतो) सिद्ध भगवान् (साइया अपज्जवसिया) सादि अनन्त (अणेगजाइ - जरा - मरण - जोणिसंसार- कलंकलीभाव - पुणम्भव - गन्भवासवसहीपवंचसमइक्कता) अनेक जन्म, जरा, मरण, योनिगमन, बाधा, पुनर्भव, २१२४ ( सण्हा) यिशु (लण्हा) अभस (घट्ठा) घृष्ट-घसेलासरणी (मट्ठा) सृष्ट (नीरा) २०४२ (निम्मला) निर्माण (नियंका) पं४२डित (निकंकडच्छाया) निष्ठवथ अन्तिवाणा ( सप्पभा) प्रलायुक्त (सस्सीरीया ) श्रीसंपन्न (सउज़ोया ) प्रकाशभय (पासाईया) प्रसन्ताः (दरिस णिज्जा ) दर्शनीय (अभिरुवा ) अलि३५ सुर ( पडिवा) सर्वांग सुंदर सुंदर पत्राणी
(इसीपव्भाराणं पुढवीए) ईषत्प्राग्भार पृथ्वीथी (सीआए) निश्रेणि गतिथी ( जोयणम्मि) योजन पर (लोगंतो ) बोनो मन्त छे (तरसणं जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए) ते योजना ने अपरनी गव्यूति छे (तस्सणं गाउ अस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे) ते गव्यूतिनो ने अपरनो छट्टो लाग छे (एत्थ ण) अडि (सिद्धाभगवंतो) सिद्ध भगवान ( साइया अपज्जवसिया ) साहि श्मन ंत (अणेगजाइ-जरा - मरण - जोणि- संसार कलंकली भावपुणभव - गन्भवासवसही पर्वचसमइक्कंता) भने ४न्म, ४२रा, भरण, यौनिगमन, जाधा, पुनर्लव, गर्भवास ३५ वसति तथा प्रपंथी अतिांत ( सासयमणागयद्धं काल चिट्ठति )
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧