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________________ ९८४ प्रज्ञापनासूत्रे ईषत्१ इति वा, ईषत्प्राग्मारा२ इति वा, तन्वी ३ इति वा, तनुतन्वी ४ इति वा, सिद्धिरिति वा ५ सिद्धालय इति वा ६ मुक्तिरिति वा ७ मुक्तालय इति वा ८, लोकाग्रमिति वा९, लोकाग्रस्तूपिका इति वा१० लोकाग्रप्रतिवाहिनी इति वा११, सर्व प्राणभूत जीवसत्वसुखावहा इति वा १२, ईषत्प्राग्भारा खलु पृथिवीश्वेता शहदलविमलस्वस्तिकमृणालदकरजस्तुषार गोक्षीरहारवर्णा, उत्तानकच्छत्र संस्थानसंस्थिता सर्वश्चेतसुवर्णमयी, अच्छा, श्लक्ष्णा मसृणा, नीरजाः, निर्मला, निष्पङ्का, __ (ईसीपभाराए णं पुढवीए) ईषत्प्रारभार पृथिवी के (दुवालसनामधिज्जा पण्णत्ता) बारह नाम कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (ईसिइवा) ईषत् (ईसिपब्भाराइ वा) ईषत्प्राग्भार (तणूइ वा) तनु (तणुतणूइ वा) तनु तनु (सिद्धित्ति वा) सिद्धि (सिद्धालए वा) सिद्धालय (मुत्तित्ति या) मुक्ति (मुत्तालएइ वा) मुक्तालय (लोयग्गेत्ति वा) लोकाग्र (लोयग्गथूभित्ति वा) लोकाग्रस्तृपिका (लोयग्गपडिबुज्झणाइ वा) लोकाग्र प्रतिवाहिनी (सधपाणभूयजीसत्तसुहावहाए या) सर्वप्राण भूतजीव सत्त्वसुखावहा। (ईसिपन्भारा णं पुढवी) ईषत्प्रारभार नामक पृथिवी (सेया) श्वेत है (संखदल विमल सोस्थियमुणालदगरयतुसार गोक्खीरहारवण्णा) शंखदल के निर्मल चूर्ण के स्वस्तिक, मृणाल, जलकण, हिम, गाय के दूध तथा हार के समान वर्ण वाली (उत्ताणयछत्त संठाणसंठिया) उलटे किये छत्र के आकार की (सव्वज्जुणसुवण्णमई) पूर्ण रूप से अर्जुनस्वर्ण के समान सफेद (अच्छा) स्वच्छ (सहा) चिकनी (लण्हा) (ईसीपब्भाराएणं पुढवीए) Jषत्प्रामा पृथ्वीना (दुवालस नामधिज्जा पण्णत्ता) मार नाम ह्या छ (तं जहा) ते २॥ प्रारे छ (ईसिइवा) षत् (ईसिपव्भाराइ वा) ध्वत्प्रामा२ (तणूइवा) तनु (तगुतगूइवा) तनु तनु (सिद्धित्तिवा) सिद्ध (सिद्धालए वा) सिद्धालय (मुत्तित्तिवा) भुति (मुत्तालएइवा) भुतासय (लोयग्गेत्तिवा) at (लोयग्गथूभियत्ति वा) ४॥ स्तूपि४॥ (लोयग्ग पडिबुज्झणाइवा) ati प्रतिवाहिनी (सव्वपाणभूयजी सत्तसुहावहाएवा) साभूत ७१ सत्व सुमार। (ईसिपब्भाराणं पुढवी) पत्प्रामा२ नाम पृथ्वी (सेया) श्वेत छ (संखदलविमलसोत्थिय मुणाल गरयतुसारगोक्खिरहारवणा) सना निर्म ચૂર્ણના સ્વસ્તિ, મૃણાલ, જલકણ હિમ, ગાયનું દૂધ તથા હારના समान पहुंक्षी (उत्ताणय छत्तसंठाणसंठिया) Aq७॥ ४२॥ २॥ ४२नी (सब्बज्जुणसुवग्गमई) पू३५५ो मन स्पर्ण ना समान स३६ (अच्छा) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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