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________________ , प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२७ ब्रह्मलोकादिदेवानां स्थानादिकम् ९२५ अर्द्धचन्द्रसंस्थानसंस्थितौ अर्चिर्माला भासराशिप्रभौ, शेषं यथा सनत्कुमारवत् प्रतिरूपौ तत्र खलु आनतप्राणतदेवानां चत्वारि विमानावासशतानि भवन्ति इत्याख्यातम् यावत् प्रतिरूपाः अवतंसकाः यथा सौधर्मे कल्पे, नवरं मध्ये अत्र प्राणतावतंसकः, ते खलु अवतंसकाः सर्वरत्नमयाः अच्छा ः यावत् प्रतिरूपाः, अत्र खल आनतप्राणतदेवानां पर्याप्तापर्याप्तानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि त्रिष्वपि लोकस्य असंख्येयभागे, तत्र खल बहवः आनतप्राणत देवाः परिवसन्ति, महर्द्धिका यावत् प्रभासयन्तः ते खलु तत्र स्वेषां स्वेषां विमानावासशतानां यावद् विहदक्षिण में विस्तीर्ण (अद्धचंद संठाणसंठिया) अर्द्ध चंद्रमा के आकार के (अचिमाली भासरासिभा) सूर्य के तेजः समूह के समान प्रभा वाले (सेसं जहा सण कुमारे) अवशिष्ट यथा सनत्कुमार जैसा (जाव पडिरुवा) यावत् प्रतिरूप (तत्यणं) वहां (आणयपाणय देवाणं चत्तारि विमाणावाससया) आनत प्राणत देवों का चारसौ विमान ( भवतीति मक्खार्थ ) हैं ऐसा कहा है (जाव पडिरुवा) यावत प्रतिरूप ( वर्डिसगा जहा सोहम्मे कप्पे ) अवतंसक जैसा सोधर्मकल्प में कहा है वैसा जानना चाहिये (नवरं) विशेष (मज्झे इत्थ पाणयवर्डिसए) मध्य में प्राणतावतंसक है (तेणं) वह ( वडिगा सव्वरयणामया) अवतंस सर्वात्मना रत्नमय है (अच्छा ) स्वच्छ ( जाव पडिरुवा) यावत् प्रतिरूप ( एत्थणं आणयपाणय देवागं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता) यहां पर्याप्त और अपर्याप्त आनतप्राणत देवों के स्थान कहे हैं (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में दक्षिणुभां विस्तीर्ण (अद्धचंदसंठाणसंठिया) अर्ध यन्द्रभाना भरना (अच्चि - माली भासरासिपमा) सूर्यना तेन: समूहना समान प्रलावाणा (सेस जहा सणकुमारे) व्यवशिष्ट सनत्कुमार नेपा ( आणय पाणय देवाणं चत्तारि विमाणावाससया) आयुत प्रयुत देवाना यारसेो विभान ( भवतीति भक्खायं) छे, म छु छे (जाव पडिरुवा) यावत् प्रति३य (वर्डिसगा जहा सोहम्मे कप्पे ) अवतःस नेवा सौधर्म इमां उस छे तेवा लगवा लेखे ( नवर) विशेष (मज्झे इत्थ पाणय वर्डिसगा) मध्यभा प्राणुतावतंस छे (तेणं) ते (वर्डिसगः सव्व रयणामया) अवतंस अधीन रीते रत्नभय छे (अच्छा ) २१२७ (जाव पडिवा) यावत् प्रति३५ (एत्थणं आणय पाणय देवाणं पज्जत्तापज्जत्तार्ण ठाणा पण्णत्ता) पर्याप्त भने अपर्याप्त मानत प्राप्त हेवाना स्थान उद्यां छे (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) त्र अपेक्षामे उरी सोहना असं ज्यातभा लागभां छे (तत्थणं) त्यां (बहवे आणयपाणयदेवा परिवसंति) धा આનત શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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