SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 938
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२४ प्रज्ञापनासूत्रे णाश्च त्रिंशताम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम् यावद् आधिपत्यं कारयन् विहरति, कुत्र खलु भदन्त ! आनतप्राणतानां देवानां पर्याप्तापर्याप्तामा स्थानानि प्रज्ञप्तानि कुत्र खलु भदन्त ! आनतप्राणताः देवाः परिवसन्ति ? गौतम ! सहस्रारस्य कल्पस्य उपरि सपक्षम् सप्रतिदिकू यावद् उत्प्रेत्य अत्र खलु आनतप्राणतनामानौ द्वौ कल्पौ प्रज्ञप्तौ, प्राचीनप्रतीचीनायतौ उदीचीनदक्षिणविस्तीर्णी सहस्रार नामक देवेन्द्र देवराज बसता है (जहा सणंकुमारे) जैसे सनत्कुमारेन्द्र (नवरं छहं विमाणावाससहस्साणं) छह हजार विमानों का (तीसाए सामाणियसाहस्सीणं) तीस हजार सामानिक देवों का (चउण्ह य तीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं) चार तीस हजार अर्थात् एक लाख वीस हजार आत्मरक्षक देवों का (जाव आहेवच्चं कारेमाणे विहरइ) यावत अधिपतिल करता हुआविचरता है-रहता है। (कहि णं मंते ! आणयपाणयाणं देवाण पज्जत्तापज्जत्तार्ण ठाणा पण्णता?) हे भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त आनत-प्राणत देवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? (कहि णं भंते आणयपाणया देवा परिवसंति ?) हे भगवन् ! आनत-प्राणत देव कहाँ निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! 'सहस्सारस्स कप्पस्स उम्पि) सहस्रार कल्प के ऊपर (सपक्खि सपडिदिसि) समान दिशा और समान विदिशा में (जाय उप्पइत्ता) यावतू जाकर (एत्थ णं आणयपाणयनामा) आनत और प्राणत नाम के(दुवे) दो (कप्पा) कल्प-देवलोक (पण्णत्ता) निरूपण किये हैं (पाईणपडीणायया) पूर्व-पश्चिम में लम्बे (उदीणदाहिणवित्थिना) उत्तर ००२ विमानाना (तीसाए सामाणियसाहस्सीणं) त्रीस १२ सामानि देवाना (चउण्ह य तीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीण) या त्रीस १२ अर्थात से साथ पीस १२ मात्म२६४ हेवन। (जाव आहेवच्चं कारेमाणे विहरइ) यावत् અધિપતિત્વ કરતા વિચરે છે રહે છે. (कहिणं भंते ! आणय पाणयाणं देवाणं पजत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) ભગવન પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત આનત પ્રાણુત દેના સ્થાના ક્યાં કહ્યાં छ ? (कहिणं भंते ! आणय पाणय देवा परिवसंति ) 3 मापन ! मानत प्रात हेव च्या निवास ४२ छ ? (गोयमा !) गौतम ! (सहस्सारस्स कप्पस्स उप्पि) सडनार ४६५ना अ५२ (सपक्खिं सपडिदिसिं) समान हशा म२ समान विशिम (जाव उप्पइत्ता) यावत् ४४न (एत्थणं आणयपाणयनामा) मानत भने प्रात नमन। (दुवे) में (कप्पा) ४५-हेपतो (पण्णत्ता) नि३५५५ या छ (पाईण पडीणायया) पूर्व-पश्चिममा ein (उदीणदाहीणवित्थिन्ना) उत्तर શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy