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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२१ वानव्यन्तरदेवानां स्थानानि ७९५ भौमेयनगरावासशतसहस्राणाम्, स्वसां स्वासां सामानिकसाहस्रीणाम् स्वासां स्वासाम् अग्रमहषीणाम्, स्वासां स्वासां पर्षदाम्, स्वेषां स्वेषाम् अनीकानाम्, स्वेषां स्वेषाम् अनोकाधिपतीनाम्, स्वासां स्वासाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम्, अन्येषाश्च बहूनाम् वानव्यन्तराणां देवानाञ्च देवीनाम् च आधिपत्यं पौरपत्यम् स्वामित्वम् भर्तृ त्वम् महत्तरकत्वम् आज्ञेश्वरसेनापत्यम् कारयन्तः पालयन्तो, (साणं साण) अपने-अपने (भोमेजनगरावाससयसहस्साणं) लाखों भोमेय नगरावासों का (साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं) अपनेअपने हजारों सामानिक देवों के (सागं साणं अग्गमहिसीण) अपनीअपनी अग्रमहिषियों का (साणं साणे परिसाणं) अपनी-अपनी परिषदों का (साणं साणं अणीयाणं) अपने-अपने अनीकों का (साणं साणं अणीयाहिबईणं) अपने-अपने अनीकाधिपतियों का (साणं साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) अपने-अपने हजारों आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च) और अन्य (बहूणं) बहुत से (वाणमंतराणं देवाण य देवीण य) वाण व्यन्तर देवों और देवीओं का (आहे वच्चं) अधिपतित्व (पोरेवच्चं) अग्रेसरत्व (सामित्तं) स्वामित्व (भहित्तं) पोषकत्व (महत्तरगत्तं) मुखियापन (आणाईसरसेगावच्च) आज्ञा-ईश्वर सेनापतित्व (कारेमाणा) कराते हुए (पालेमाणा) पालन करते हुए (महयाहय नगीव वाइय तंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडप्पवाइयरवेणं) नृत्य, गीत और कुशल वादकों द्वारा बजाए हुए वीणा, तल ताल, त्रुटिट, पोतपोताना (भोमेज्जनगरावाससयसयसहस्साणं) वा मौभेय नारावासोना (साणं साणं सामाणियसाहस्तीण) पातपाताना उन। सामानि वाना (साण साणं अग्गमहिसीणं) पातपातानी सभापीयानी (साणं साणं परिसाण) पातपातानी परिषहोना (साणं साणं अणीयाण) पातपातानी मनीन (साण साणं अणियाहिवईण) पातपातान मनीधिपतियाना (साणं साण आयरकक्ख देवसाहस्सीण) पातपाताना उप। २मात्म२३४ हेवाना (अन्नेसिंच) मन मीन (बहूण) घg (वाणमंतराण देवाण य देवीण य) पान०यन्त२ हेवे। भने हेवीयाना (आहेवच्चं) माथिपतित्व (पौरेवच्चं) अग्रेसर (सामित्त) स्वामित्व (भट्टित्त) पोष४१ (महत्तरगत्त) माओवाना (ओणाईसरसेणावचं) २माज्ञा-श्वर सेनापतित्व (कारेमाणा) ४२११ता (पालेमाणा) पालन ४२॥ (महयाहयनगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंग पडुप्पवाइयरवेण) नृत्य, गीत भने शद वा दो। पास वी, तस, तd, भू माहि पायोनी पनिनी सा2 (दिव्वाइं भोग. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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