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________________ प्रबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२० सुवर्ण कुमारदेवानां स्थानानि ७७१ टीका - अथ सुवर्णकुमाराणां पर्याप्तापर्याप्तानाम् स्वस्थानादिकं प्ररूपयितुमाह - ' कहि णं भंते ! सुवण्णकुमाराणं देवाणं' हे भदन्त ! कुत्र खलु - कस्मिन् प्रदेशे, सुवर्णकुमाराणाम् देवानाम् 'पज्जत्तापजत्ताणं' पर्याप्तापर्याप्तानाम् 'ठाणा पण्णत्ता' स्थानानि स्थित्यपेक्षया स्वस्थानानि प्रज्ञप्तानि - प्ररूपितानि सन्ति ? तदेव प्रकारान्तरेण पृच्छति 'कहिणं भंते! सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ?' हे भदन्त ! कुत्र खलु - कस्मिन् प्रदेशे, सुवर्णकुमारा देवाः परिवसन्ति ? भगवान् उत्तरयति - 'गोयमा !' हे गौतम! 'इमी से रयणप्पभाए पुढवीए' अस्याः पुष्पभा य नागुदही) नागकुमारों और उदधिकुमारों के शिलिन्ध पुष्प के समान नीले (आसा सगवसणधरा) अश्व के मुख के फेन के समान - श्वेत वस्त्रों के धारक हैं (सुवण्णा दिसा थणिया) सुपर्णकुमार दिशाकुमार और स्तनितकुमार ॥ १३९ ॥ (नीलानुरागवसणा) नीले रंग के वस्त्र वाले (विज्जू अग्गी य हुति दीवा य) विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमार होते हैं । ( संझाणुराग वसणा) संध्या की लालिमा जैसे वस्त्र वाले (वाउकुमारा) वायुकुमार (मुणेयच्चा) जानना चाहिए ॥ १४०॥ टीकार्थ- अब पर्याप्त और अपर्याप्त सुवर्ण कुमारों की प्ररूपणा की जाती है - श्री गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं - हे भगवन् ! पर्याप्त तथा अपर्याप्त सुवर्णकुमारों के स्थान कहां हैं ? प्रकारान्तर से यही प्रश्न पुनः किया गया है - हे भगवन् ! सुवर्ण कुमार देव कहां निवास करते हैं ? भगवान उत्तर देते हैं - हे गौतम ! एक लाख अस्सी हजार योजन भाय नागदही) नागकुमारो भने अधिभारोना शिसिन्ध पुष्पना समान नीस (आसासगवसणधरा) अश्वना भुखना झीगुना समान श्वेत वस्त्रना धार छे ( सुवण्णादिसाधणिया) सुवार्थ कुमार, हिशाकुमार ने स्तनितकुमार ॥१३८॥ (नीला रागवसणा) नीस रंगना वस्त्रवाणा (विज्जू, अग्गीय हुति दीवा य) विद्युत्कुमार, अग्निकुमार भने द्वीपकुमार होय छे (संझाणुरागवसणा) सध्या नी सासीमां नेवा वस्त्रवाजा (वाउकुमारा) वायुकुमार (मुगेयव्वा) लगुवा लेखे. ॥ सू. १४० ॥ ટીકા-હવે પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત સુવર્ણ કુમારેાની પ્રરૂપણા કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન પર્યાપ્ત તથા અપર્યંમ સુવર્ણ કુમારોના સ્થાન કયાં છે ? પ્રકારાન્તરે એજ પ્રશ્ન પુનઃ કરાયેા છે હે ભગવન્ સુવર્ણ કુમાર દેવ કર્યાં રહે છે ? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે કે ગૌતમ ! એક લાખ એસી હજાર ચેાજન શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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