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________________ ७४० प्रज्ञापनासूत्रे सप्ततिसहस्रोत्तरे योजनशतसहस्रे अत्र खलु नागकुमाराणाम् देवानां पर्याप्तापर्याप्तानाम् चतुरशीति, भवनावासशतसहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातम्, तानि खलु भवतानि बहिवृतानि, अन्तश्चतुरस्राणि यावत् प्रतिरूपाणि, तत्र खलु नागकुमाराणाम् पर्याप्तापर्याप्तानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिष्वपि लोकस्य असंख्येयभागः, तत्र खलु बहवो नागकुमारा देवा परिवसंति, महद्धिकाः,महाद्युतिका, शेष यया औधिकानाम्, यावद् विहरं ति, धरणभूतानन्दौ अत्र खलु द्वौ नागकु(वजित्ता) छोडकर (मज्झे) मध्य में (अट्टहुत्तरे जोयणसयसहस्से) एक लाख अठहत्तर हजार योजन में (एत्थ णं) यहां (नागकुमाराण) नागकुमार (देवाणं) देवों के (पजत्तापजत्तगाणं) पर्याप्त तथा अपर्याप्तों के (चुलसीद भवणावाससयसहस्सा) चौरासी लाख भवनावास (भवंतीति मक्खाय) हैं ऐसा कहा है (ते णं अवणा) वे भवन (बाहिं वहा) बाहर से गोलाकार हैं (अंतो च उरंसा) अन्दर से चौकोर हैं (जाव) यावत् (पडिरूवा) अतीव सुन्दर हैं (तत्थ णं) वहां (णागकुमाराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमारों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं (तीसु वि) तीनों अपेक्षाओं से (लोगस्स असंखेज्जइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में। ___ (तत्थ णं) वहां (बहवे) बहुत-से (नागकुमारा देवा (नागकुमार देव (परिवसंति) निवास करते हैं (महिड्डिया) महान् ऋद्धि के धारक (महज्जुईया) महान् कान्ति वाले (सेसं जहा ओहियाणं) शेष वर्णन सामान्य भवनवासी देवों जैसा (जाव) यावत् (विहरंति) विचरते हैं। M२ यो- (वज्जित्ता) त्य ने (मज्झे) मध्यमा )अट्टहुत्तरे जोयणसहस्से) मे स1५ २५योतेर उM२ याम (एत्थणं) -A3? (नागकुमाराणं) नागभार (देवाण) दे॒वाना (पज्जत्ता पजत्ताणं) पर्याप्त तथा २५ सोना (चुलसीइ भवणावाससयसहस्सा) श्योरासी सास भवनावास (भवंतीति मक्खाय) छे सेभ यु छ. (तेणं भवणा) वे सपना (बाहिं वट्टा) महारथी गो२ छ (अंतो चउरंसा) मन्ट२थी थे।२४ छ (जाव) यावत् (पडिरूवा) अतीव सुन्४२ छ (तत्थणं) त्यां (नागकुमाराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्यात भने २०५यति नारामारोना (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) ४i छ (तीसु वि) त्राणे अपेक्षामाथी (लोगस्स असंखेज्जइ भागे) न मयातमा लामा (तत्थणं) त्या (बहवे) ५ मा (नागकुमारा देवा) नामा२ हेव (परिवसंति) निवास ४२ छ (महिइढिया) महान् समृद्धिना घा२४ (महज्जुइया) भडन् raam (सेसं जहा ओहियाणं) शेष १ - सामान्य नवनवासी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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