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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.१८ असुरकुमारदेवानां स्थानानि ७२३ भवनावासशतसहस्राणाम्, चतुष्षष्टेः सामानिकसाहस्रीणाम्, त्रयस्त्रिंशत् स्त्रायस्त्रिंशकानाम्, चतुर्णा लोकपालानाम्, पश्चानाम् अग्रमहिषीणाम् सपरिवाराणाम् तिसणाम् पर्षदाम्, सप्तानाम् अनीकानाम्, सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम् चतसयक्खा) रक्त नेत्रों वाले (तहेव) उसी प्रकार-पूर्ववत् (जाव) यावत् (मुंजमाणा) भोगते हुए (वहरंति) रहते हैं । (एएसिं णं) इनके (तहेव) उसी प्रकार (तायत्तीसगलोगपाला) त्रायस्त्रिंशक और लोकपाल (भवंति) होते हैं (एवं) इस प्रकार (सव्वत्थ) सभी जगह (भाणियव्वं) कहना चाहिए । _ (भवणवासीणं) भवनवासी देवों का (चमरे) चमर (इत्थ) यहां (असुरकुमारिंदे) असुरकुमारों का इन्द्र (असुरकुमारराया) असुरकुमारों का राजा (परिवसंति) निवास करता है (काले) कृष्णवर्ण (महानीलसरिसे) महान् नील के समान (जाव पभासेमाणे) यावत् प्रकाशित करता हुआ (से णं) वह (तत्थ) वहां (चउतीसाए भवणावाससयसहस्साणं) चौतीस लाख भवनों का (चउसठ्ठीए सामाणियसाहस्सीगं) (चौसठ हजार सामानिक देवों का (तायत्तीसाए ताय. त्तीसगाणं) तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का (चउण्हं लोगपालाणं) चार लोगपालों का (पंचण्हं अग्गमहिसीगं सपरिवाराणं) पांच सपरिवार अग्रमहिषियों का (तिहं परिसागं) तीन परिषदों का (सत्तण्हं अणि. याणं) सात अनीकों का (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात अनीकाधि. (तहेव) मे ५४ारे (जाव) यावत् (मुंजमाणा) लागवता २४ीने (विहरंति) २९ छे. (एएसि णं) तेमना (तहेव) ते ४ारे (तायत्तीसग लोगपाला) आयरिश भने ४५८ (भवंति) डाय छ (एव) से प्रारे (सव्वत्थ) मधी या (भणियव्यं) ४ नये (भवनवासीणं) नवनवासीवाना (चमरे) यभर (इत्थ) माडी (असुरकुमारिंदे) मसुभान छन्द्र (असुरकुमारराया) असु२४माना २0 (परिवसंति) निवास ४२ छ (काले) पर्ण (महानीलसरिसे) भडान् नीसना समान (जाव प्पभासेमाणे) यावत् प्रशित ४२० २१ छ (से णं) ते (तत्थ) त्यां (चउतीसाए भवणावाससयसहस्साणं) यात्रीस मनाना (च उसट्ठीए सामाणिय साहस्सीणं) यास २ सामानियाना (तापत्तीसाए तापत्तीसगाणं) तेत्रीस वायलिश देवाना (चउण्हं लोगपालाणं) या सोपासना (पंचण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं) पाय सपरिवार ममापीयाना (तिण्हं परिसाणं) र ५२५होन। (सत्तण्हं अणियाण) सात मनी (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात मनाधिपतियाना (च उण्ड શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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