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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू१८ असुरकुमारदेवानां स्थानानि १९५ ण्डलधराः, आर्द्रचन्दनानुलिप्तगात्राः, ईषच्छिलिन्ध्रपुष्पप्रकाशानि असंक्लिष्टानि सूक्ष्माणि वस्त्राणि प्रवराणि परिहिताः, वयश्च प्रथमं समतिक्रान्ताः, द्वितीयञ्चययोऽसंप्राप्ताः, भद्रे यौवने वर्तमानाः तलभङ्गकत्रुटितप्रवरभूषणनिर्मल मणिरत्नमण्डितभुजाः, दशमुद्रामण्डिताग्रहस्ताः, चूड़ामणिचित्रचिह्नगताः, सुरूपाः महके समान ओठों वाले (धवलपुप्फदंता) श्वेत पुष्पों के समान दांतों वाले (असियकेसा) काले केशों वाले (वामे) बाएं (एगकुंडलधरा) एक कुंडल धारण करने वाले (अद्द चंदणाणुलित्तगत्ता) गोले चंदन से लिप्स शरीर वाले (इसीसिलिंधपुप्फपगासाई) किंचित् सिलिंध पुष्प के समान (असंकिलिट्ठाई) संक्लेश न उत्पन्न करने वाले (सुहुमई) सूक्ष्म (वत्थाई) वस्त्रों का (पवर) श्रेष्ठ (परिहिया) पहिने हुए (वयं च पढमं समइक्कंता) प्रथम वय को पार कर चुके (बिइयं च वयं असंपत्ता) दूसरे वय को नहीं प्राप्त हुए (भद्दे) भद्र (जोव्यणे) यौवन में (वमाणा) वर्तमान (तलभंगयतुडियपवर भूसण निम्मलमणिरयण मंडियभुया) तलभंग, त्रुटित तथा अन्य श्रेष्ठ आभूषणों में जडी निर्मल मणियों तथा रत्नों से मंडित भुजाओं वाले (दस मुद्दा मंडियग्गहत्था) दस मुद्रिकाओं से मंडित अंगुलियों वाले (चूडामणि विचित्तचिंधगया) चूडामणि रूप अद्भुत चिह्न वाले (सुरुवा) सुन्दर रूप वाले (महिइढिया) महायश शाली (महब्बला) महाबली इत्यादि पूर्ववत् । (काल) ni (लोहियक्ख विबोट्ठा) होता. २४ तथा सिमाना समान हवा (धवलपुप्फदंता) श्वेत पुण्याना समान id प (असियकेसा) ४॥ शव (वामे) मे (एगकुंडलधरा) उसने पा२९४ ४२ना। (अहचंदणाणुलित्तगत्ता) सायन्थी सित गात्रवाणा (इसीसिलिंघ पुप्फपगासाई) xivs सिYि०५ना समान (असंकिलिढाई) ससे न उत्पन्न ४२वावा (सुहुमाइं) सूक्ष्म (वत्थाई) वस्त्रोने (पवर) श्रेष्ठ (परिहिया) पहरेसा (वयंच पढमं समइक्कता) प्रथम भरने वाली यू। (विइयं च वयं असंपत्ता) भी क्यने नही पामेला (भदे) मद्र (जोव्वणे) यौवनमा (वट्टमाणा) २९सा (तलमंगय तुडिय पवरभूसण निम्मलमणिरयणमंडियभुया) del, त्रुटित तथा मीन श्रेष्ठ આભૂષણે માં જડેલા નિર્મલ મણિયા તથા રત્નથી મંડિત ભુજાઓ વાળા (दस मुद्दामंडियग्गहत्था) ४० विटीसाथी सुमित मागणीय वाणा (चडामणि विचित्तचिंधगया) यूडामणि ३५ अद्भुत यिहाण (सुरुवा) सुन्६२ ३५१ (महइढिया) महान् समृद्धिधारी (महज्जुइया) महान् धुतिया (महायसा) महा५२. cी (महब्बला) भ वान् त्या पूर्ववत्, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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