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________________ प्रज्ञापनासूत्रे अत्र खलु बादरवनस्पतिकायिकानां पर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि । उपपातेन सर्वलोके, समुद्घातेन सर्वलोके, स्वस्थानेन लोकस्यासंख्येयभागे। कुत्र खलु भदन्त ! बादरवनस्पतिकायिकानामपर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! यत्रैव बादरवनस्पतिकायिकानां पर्याप्तकानां स्थानानि तत्रैव बादरवनस्पतिकायिकानामपर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि । उपपातेन सर्वलोके, समुद्घातेन सर्वलोके, स्वस्थानेन लोकस्यासंख्येयभागे । कुत्र खलु भदन्त! सूक्ष्मकायिकानां पर्या(जलट्ठाणेसु) जल स्थानों में (एत्थ णं बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) इन सभी स्थानों में बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक जीवों के स्थान कहे हैं (उववाएण सव्वलोए) उपपात की अपेक्षा समस्त लोक में हैं (समुग्घाएणं सवलोए) समुद्घात की अपेक्षा समस्त लोक में हैं (सहाणेणं लोयस्त असंखेजइभागे) स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। (कहि णं भंते ! बायरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवों के स्थान कहां हैं ? (गोयमा ! जत्थेव बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा) जहां बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तकों के स्थान हैं (तत्थेव बायरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) वहीं बादरवनस्पतिकायिक अपर्याप्तों के भी स्थान हैं (उचशएणं सव्वलोए) उपपात की अपेक्षा सर्वलोक में हैं (समुग्घाएणं सव्वलोए) समुद्घात की अपेक्षा सर्वलोक में हैं (सहाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे) स्वस्थान की लेसु) ५०४२शमा (वप्पिणेसु) क्षेत्रोमा (दीवेस) दीपोभा (समुद्देसु) समुद्रोमा (सव्वेसु चेव जलासएसु) माशयम (जलठ्ठाणेसु) ४णनास्थानमा (एत्थणं बायरवस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) २ मा स्थानमा ६२ वनस्पति४यि: पति याना स्थान छ (उववाएणं सव्वलोए) ७५५तनी अपेक्षा समस्त सभा छ (समुग्धाएणं सव्वलोए) समुद्धातनी अपेक्षा समस्तवमा छ (सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे) २वस्थाननी अपेक्षा सोना मन्या . તમા ભાગમાં છે. (कहि णं भंते ! बायरवणस्सइकाइयाणं अपजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ?) भगवन् ! मा४२१२५तिथि: २५५र्यातवानां स्थान या छ ? (गोयमा! जत्थेव बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा) न्या ॥४२ पन३५तिथि पर्यापन स्थान छ, (तत्थेव बायरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) त्या माह२ वनस्पतिशय मीना ५ स्थान छ. (उववाएणं सव्वलोए) यातनी अपेक्षा स भा छ (समुग्घाएणं सव्वलोए) समुद्धातनी अपेक्षा सप શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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