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________________ प्रज्ञापनासूत्र टीका-अथ वादरवायुकायिकादीनां स्थानादीनि प्ररूपयितुमाह-'कहिणं भंते ! बायरवाउकाइयणं पजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! कुत्र खलु बादरबायुकायिकानां पर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह-'गोयमा !" हे गौतम ! 'सहाणेणं' स्वस्थानमाश्रित्य स्वस्थानापेक्षयेत्यर्थः, 'सत्तमु घणदाएसु' सप्तसु धनवातेषु 'सत्तमु घणवायवलएसु' सप्तसु धनवातवलयेषु 'सत्तसु तणुवाएमु सप्तसु तनुवातेषु, 'सत्तसु तणुवायवलएमु' सप्तसु तनुवातवलयेषु, 'अहोलोए' अधोलोके 'पायालेसु' पातालेषु 'भवणेषु भवनेषु, भवणपत्थडेसु' भवनप्रस्तटेषु 'भवणछिद्देसु' भवनच्छिद्रेसु भवनविकाशान्तरेषु 'भवणनिक्खुडेसु'भवननिष्कुटेषु-गवाक्षादिसदृशभवनप्रदेशेषु, 'निरएसु'-निरयेषु-नरकेषु 'निरयावलियासु' निरयावलिकासु, 'निरयपत्थडेसु' निरयप्रस्तटेषु 'निरयछिदेस' निरयच्छिद्रेषु-नरकावकाशान्तरेषु, 'निरयनिक्खुडेसु' निरयनिष्कुटेषु-गवाक्षादि सदृशनरकावासाप्रदेशेषु, तथा-'उडलोए' ऊर्ध्वलोके-'कप्पेसु' कल्पेमु'सौधर्मादि कल्पेषु अपज्जत्तगा ते सब्वे) गौतम ! सूक्ष्मवायुकायिक जो पर्याप्त और जो अपर्याप्त हैं, वे सब (एगविहा) एक प्रकार के हैं इत्यादि पूर्ववत् ॥४॥ टीकार्थ-अब वायुकायिकों के स्थान की प्ररूपणा करते हैं । गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-भगवन् ! पर्याप्त बादर वायुकायिकों के स्थान कहां कहे हैं ? भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनवातों में, सात घनवातवलयों में, सात तनुवातों में, सात तनुवातवलयों में, अधोलोक के अन्दर पातालों में, भवनों में, भवनों के पाथडों में, भवनों के छिद्रों में अवकाशान्तरों में, भवनों के निष्कुट अर्थात् गवाक्ष आदि समान भवनप्रदेशों में, नरकों में, नरकावलिकाओं में, नरक के पाथडों में, नरक के छिद्रों अर्थात् अवकाशान्तरों में, नरक के निष्कुट प्रदेशों में, ___ ऊलोक के अन्दर सौधर्म आदि कल्पों में, अवेयक आदि 1 ટીકાઈ–હવે વાયુકાચિકેના સ્થાનની પ્રરૂપણ કરે છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી એ પ્રશ્ન કર્યો-ભગવદ્ પર્યાપ્ત બાદર વાયુકાચિકેના સ્થાન ક્યાં છે? શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપ્યો–હે ગૌતમ ! સ્વસ્થાનની અપેક્ષાથી સાત ઘન વાતોમાં સાત ઘનવાતવલમાં, સાત તનુવાતમા, સાત તનુવાતવલમાં અધે લેકની અન્દર પાતાલેમાં ભવનમાં, ભવનના પરથારમાં, ભવનના છિદ્રોમાં અવકાશાન્તરોમાં, નરકમાં, નરકાવલિઓમાં. નરકના પરથારમાં, નરકના છિદ્રોમાં અર્થાત અવકાશાન્તરોમાં, નરકના નિષ્કટ પ્રદેશમાં, ઉદ્ઘલેકની અન્દર સૌધર્મ આદિ કપમાં પ્રવેયક આદિ વિમાનમાં, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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