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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.४१ समेददेवस्वरूपनिरूपणम् ५४३ विश्वावसवः १०, गीतरतयः ११, गीतयशसः १२ । यक्षास्त्रयोदशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पूर्णभद्राः १, मणिभद्राः २, श्वेतभद्राः ३, हरितभद्राः ४, सुमनोभद्राः ५, व्यतिपातिकभद्राः ६, सुभद्राः ७, सर्वतोभद्राः ८, मनुष्यपक्षाः ९, वनाधि. पतयः १०, वनहाराः ११, रूपयक्षाः १२, यक्षोत्तमाः १३, राक्षसाः सप्तविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा भीमाः१, महाभीमाः२, विघ्नाः ३, बिनायकाः ४, जलराक्षसाः ५, राक्षसराक्षसाः ६, ब्रह्मराक्षसाः ७। भूता नवविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा -मुरूपाः१, प्रतिरूपाः२, अतिरूपाः३, भूतोत्तमाः ४, स्कन्दाः ५, महास्कन्दाः ६, महावेगा:७, प्रतिच्छन्ना:८, आकाशगाः ९ । पिशाचाः षोडशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कूष्माण्डाः१, पटकाः२, सुजोषाः३, आह्निकाः४, कालाः५, महाकाला:६, कादम्ब (९) रैवत (१०)विश्वावसव (११) गीतरति और (१२) गीतयश। यक्ष तेरह प्रकार के होते हैं-(१) पूर्णभद्र (२) मणिभद्र (३) श्वेतभद्र (४) हरितभद्र (५) सुमनोभद्र (६) व्यतिपातिकभद्र (७) सुभद्र (८) सर्वतोभद्र (९) मनुष्यपक्ष (१०) वनाधिपति (११) वनाहार (१२) रूपयक्ष और (१३) यक्षोत्तम । राक्षस देव सात प्रकार के होते हैं-(१) भीम (२) महाभीम (३) विघ्न (४) विनायक (५) जलराक्षस (६) राक्षस राक्षस और (७) ब्रह्मराक्षस । भूत नौ प्रकार के होते हैं-(१) सुरूप (२) प्रतिरूप (३) अतिरूप (४) भूतोत्तम (६) स्कन्द (६) महास्कन्द (७) महावेग (८) प्रतिच्छन्न और (९) आकाशग। पिशाच सोलह प्रकार के होते हैं-(१) कूष्माण्ड (२) पटक (३) सुजोष (४) आहूनिक (५) काल (६) महाकाल (७) चोक्ष (८) अचोक्ष विश्वास५ (११) जातति (१२) गीतयश यक्ष ते२ प्र४२। डाय छ (१) पू मद्र (२) मणिभद्र (3) श्वेतमद्र, (४) उरितमद्र (५) सुमनाम5 (6) व्यतिपातमद्र (७) सुभद्र (८) सप्ताभद्र (6) भनुध्ययक्ष (१०) वनाधिपति (११) ना।२ (१२) ३५यक्ष मने (१३) यसत्तम राक्षस हेव सात ४२ हाय छ-(१) भीम (२) महालीम (3) विन (४) विनाय४ (५) ४४राक्षस (6) राक्षस २।१स भने (७) ब्रह्मराक्षस भूत नौ प्र४२ना डाय छ (१) सु३५ (२) प्रति३५ (3) पति३५ (४) भूतोत्तम (५) २४६ (६) भ७२४-६ (७) भडवे (८) प्रतिछिन्न मने (6) આકાશગ. पिशाय सतत प्रा२ना डाय छ-(१) कमाए (२) ५८४ (3) सुनेष. (४) माहित (५) ४ (६) भड।४८४ (७) याक्ष (८) मयाक्ष (८) तपिशाय શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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