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________________ ३७८ प्रज्ञापनासूत्रे ऋक्षाः, तरक्षाः, पाराशराः, शृगाला:, बिडालाः, श्वानः, कोलश्वानः, (ग्रन्यः ५००) कोकन्तिकाः, शशकाः, चित्रकाः, चिल्लकाः, ये चान्ये तथा प्रकाराः, ते एते सनखपदाः ४ । ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संमूच्छिमाश्थ, गर्भव्युत्क्रान्तिकाश्च । तत्र खलु ये ते संमूच्छिमास्ते सर्वे नपुंसकाः। तत्र खलु ये ते गर्भव्युत्क्रान्तिकास्ते त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-स्त्रियः १, पुरुषाः २, नपुंसकाः। एतेषां खलु एवमादिकानां स्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्याप्तापर्याप्तानां दशजाति कुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । ते एते चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ॥सू०३२॥ ___(से किं तं सणप्पया ?) सनखपद कितने प्रकार के हैं ? (अणेगविहा पपणत्ता) अनेक प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (सीहा) सिंह (यग्घा) व्याघ्र (दीविया) द्वीपिक (अच्छा)रीछ (तरच्छा) तरक्ष (पररसरा) पाराशर (सियाला) सियार (विडाला) विडाल (सुणगा) श्वान (कोलसुणगा) कोलश्वान (कोकेतिया) लोमडी (ससगा) शशक (चित्तगा) चित्ता (चिल्लगा) चिल्लक (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य भी जो इसी प्रकार के हैं (से तं सणप्फया) यह सनखपदों की प्ररूपणा समाप्त हुई। (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (समुच्छिमा य गम्भवक्कंतिया य) संमूछिम और गर्मज (तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा) उनमें जो संमूर्छिम हैं (ते सव्वे नपुंसगा) वे सब नपुंसक हैं (तत्य णं जे ते गम्भवक्कंतिया) उनमें जो गर्भज हैं (ते तिविहा पण्णत्ता) ये तीन प्रकार के कहे हैं (तंजहा) वह इस प्रकार (इत्थी पुरिसा नपुंसगा) स्त्री, पुरुष और नपुंसक (एएसि (से कि तं सणप्पया) नumi प्राणी ॥ ४॥२॥ छ (सणप्पया) नमपाणi jी (अणेगविहा पण्णत्ता) भने ५४।२। ४i छ (तं जहा) ते ॥ ४ारे छ (सीहा) सिड (वग्धा) पाथ (दीविया) ५७४ (रिच्छा) रीछ (तरच्छा) त२६ (परस्सरा) पा२।१२ (सियाला) सीयाण (बिडाला) मोबाडी (सुणगा) त (कोलसुणगा) सित। (कोकंतिया) isतीयn aisी (ससगा)ससा (चित्तगा) यित्त। (चिल्लगा) PAAY (जे यावन्ने तहप्पगारा) यी २ मा प्रारना छ (से तं सण्णप्पया) २॥ सनम पानी प्र३५॥ २४ (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) ते सपथी 2. प्रा२॥ ४॥(तंजहा) तेसो २ प्रारे (समुच्छिमाय गम्भवतियाय) स भूछिभ मने ४ (तत्थणं जे ते संमुच्छिमा) तेसम 2 स भूमि छ (ते सव्वे नपुंसगा) तेस। બધા નપુંસક છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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