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________________ ३५६ प्रज्ञापनासूत्रे मूलम-से किं तं चउरिदियसंसारसमावन्नजीवपण्णवणा? चउरिदिय संसारसमावन्नजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अंधिय पत्तिय मच्छिय, मसगा कीडे तहा पयंगे या ढंकुण कुक्कड कुक्कुह, नंदावत्ते य सिंगिरडे ॥१॥ किण्हपत्ता जीवपत्ता लोहियपत्ता हारिदपत्ता सुकिल्लपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओहंजलिया जलचारिया गंभीरा णीणिया तंतया अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा नेउरा दोला भमरा भरिली जरुला तोटा विच्छ्या पत्तविच्छ्या छाणविच्छ्या जलविच्छया पियंगाला कणगा गोमयकीडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, सव्वे ते संमुच्छिमा नपुंसगा। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा,-पजत्तगा य, अपजत्तगा य । एएसि णं एवमाइयाणं चउरिदियाणं पजत्तापजत्ताणं नवजाइ कुलकोडि जोणिप्पमुह सयसहस्साई भवंतीति मक्खायं । से तं चउरिदियसंसारसमावन्नजीवपण्णवणा।सू.२७। छाया-अथ का सा चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना ? चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना अनेकविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-"अन्धिकाः, पत्रिकाः, मक्षिनः, मशकाः, कीटाः, तथा पतंगाश्च । ढंकुणाः, कुकहा कुक्कुडा नन्यावर्ताश्व शुङ्गिरटाः ॥१॥ कृष्णपत्राः, नीलपत्राः, लोहितपत्राः, हारिद्रपत्राः, शुक्ल __ शब्दार्थ-(से किं तं चउरिंदियसंसारसमापन्नजीवपण्णवणा ?) चौइन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना क्या है ? (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार है-(अंधिय) अधिक (पत्तिय) पत्रिक (मच्छिय) मक्खी (मसग) मच्छर (कीडे) साथ-(से कि तं चउरिदिय संसारसमावन्नजीवपण्णवणा) यतन्द्रियसंसार समायन वानी प्रज्ञापन शु छ ? (चरिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) यतुन्द्रिय संसार समापन योनी प्रज्ञापन। (अणेगविहा पण्णत्ता) भने प्रा२नी ही छ (तं जहा) ते 2॥ शत। (अंधिय) मधि४ (पत्तिय) पत्रि (मच्छिय) मामी (मसग) भ२७२ (कीडे) Hist (तहा पयंगेय) अने. ५ilu (ढकुण) १ (कुक्कड) ४४॥ (कुक्कुह) ४५ (नंदावत्तेय) नधावत (सिंगिरड) श्रृं।२४ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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