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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.२५ समेदद्वीन्द्रियजीवनिरूपणम् ३४७ मुखाः, गोजलौकसः, जालायुष्काः, शङ्खाः, शङ्खनकाः, घुल्लाः, खुल्लाः, गुड़जाः, स्कन्धाः, वराटाः, सौत्रिकाः, मूत्रिकाः, कलुकावासाः, एकतोवृत्ताः, द्विधातो. वृत्ताः, नन्दिकावर्ताः, शम्बुक्काः, मातृवाहाः, शुक्तिसम्पुटाः, चन्दनाः, समुद्रलिक्षाः, ये चान्ये तथाप्रकाराः सर्वे ते संमूच्छिमा नपुंसकाः, ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च । एतेषां खलु एवमादिकानां द्वीन्द्रियाणां पर्याप्तापर्याप्तानां सप्त जातिकुलकोटि योनिप्रमुख शतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यानम् । ते एते द्वीन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनाः ॥९० २५॥ (जालाउया) जालायुष्क (संखा) शंख (संखणगा) शंखनका (घुल्ला) घुल्ला (खुल्ला) खुल्ला (गुलया) गुडजा (खंधा) स्कन्ध (वराडा) वराटकौडी (सोत्तिया) सौत्रिक (मुत्तिया) मूत्रिक (कलुयावासा) कलुकावास (एगओवत्ता) एकतोवृत्त (दुहओ वत्ता) द्विधातो वृत्त (नंदियावत्त) नन्दिकावर्त (संबुक्का) शम्बूक (माइवाहा) मातृयाह (सिप्पिसंपुडा) शुक्तिसंपुट (चंदणा) चन्दनक (समुद्दलिक्खा) समुद्रलिक्षां जे यायन्ने तहप्पगारा) अन्य जो भी इस प्रकार के हैं। (सव्वेते) वे सभी (संमुच्छिमा) संमूर्छिम (नपुंसगा) नपुंसक होते हैं (ते समासओ दुविहा पन्नत्ता) वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) इस प्रकार (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याप्त और अपर्याप्त । (एएसि णं) इनके (एपमाइयाणं) इत्यादि (बेइंदियाणं) द्वीन्द्रियों के (पज्जत्ता पज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त के (सत्त जाइकुलकोडिसो मौsa (जालाउया) analges (संखा) A4 (संखणगा) शमन (घुल्ला) Yeu (खुल्ला) मुसा (गुलया) शु30 (खंधा) २४५ (वरोडा) sी (सोत्तिया) सीनि४ (मुत्तिया) भू४िा (कलुया वासा) ४९४ पासा (एगओ चत्ता) से मानु गोण (दुहओ वत्ता) में मानु वृत्त (नंदियावत्त) नहीपत्त (संबुक्का) शपुर (माइवाहा) भातृवाड (सिप्पी संपुडा) शुति स ट (चंदणा) यन (समुद्दलिक्सा) समुद्र सिक्षा (जे यावन्ने तहप्पगारा) भीमा प्रा२ना छ. (सव्वे ते) ते मा (समुच्छिमा) स भूछिम (नपुंसगा) नस डेय छ (ते समासओ दुविहा पन्नत्ता) तो सपथी में प्रा२न४ा छ (तं जहा) ते ॥ ४॥२ (पज्जत्तगा य अपजत्तगा य) ५ ४ अने२५५यात (एएसि णं) तेभान (एवमाइयाणं) वगेरे (बेइंदियाण) allद्रयाना (पज्जत्ता पज्जताण) पर्यात अने २५५ तना (सत्त जाई कुलकोडि जोणिपमुह सयसहरसाई) and anmola ga 331 (भयंतीति मक्खाय) उसय छ म छु શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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