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________________ ३३२ प्रज्ञापनासूत्रे अयोगोलोध्मातो जातस्तप्ततपनीयसंकाशः। सर्वोऽग्नि परिणतः, निगोदजीवान् तथा जानीहि ॥४।। एकस्य द्वयोः त्रयाणां च संख्येयानां वा न द्रष्टुं शक्यानि । दृश्यन्ते शरीराणि, निगोदजीवानामनन्तानाम् ॥५॥ लोकाकाश प्रदेशे निगोदजीवं स्थापय एकैकम् । एवं मीयमाना भवन्ति लोका अनन्तास्तु ॥६॥ लोकाकाशप्रदेशे, परीतजीवं स्थापय एकैकम् । एवं मीयमाना भवन्ति लोका असंख्येयाः ॥७। प्रत्येकाः पर्याप्ताः प्रतरस्य असंख्यभागमात्रास्तु । लोगा साधारण श्वासोच्छ्वास का ग्रहण (साहारणजीवाणं) साधारण जीवों का (साहारणलक्खणं) साधारण लक्षण (एयं) यह । ___(जह) जैसे (अयगोलो) लोहे का गोला (धंतो) गरम किया (जाओ) हुआ (तत्ततवणिजसंकासो) तपे हुए सोने के समान (सब्बो) सारा (अगणिपरिणओ) अग्नि रूप परिणत (निगोयजीवे) निगोद के जीवों को (तहा) उसी प्रकार (जाण) जानो। __ (एगस्स) एक का (दोण्ह) दो का (तिण्ह व) अथवा तीन का (संखिजाण व) अथवा संख्यात का (न पासिउं सका) देखना शक्य नहीं है (दीसंति) दीखते हैं (सरीराई) शरीर (निगोयजीयाण) निगोद जीवों के (अर्णताणं) अनन्त के। (लोगागासपएसे) लोकाकाश के एक-एक प्रदेश में (निगोयजीव) निगोद जीव को (ठवेहि) स्थापित किया जाय (इक्किक्क) एक-एकको (एवं) इस प्रकार (मविजमाणा) स्थापित किये हुए (हवंति) होते हैं (लोगा) लोक (अणंता) अनन्त (उ) वितर्क । (साहारणमाहारो) साधा२३ मा १२ (साहारण माणपाणगहण च) साधा२९ श्वासोच्छवासनु अ (साहारण जीवाण) साधा२१ योनु (साहारणलक्खण) साधा२९ समए (एवं) ते (जह) रेभ (अयगोलो) सोढाने गाणे (तो) गरम यो (जाओ) डाय (तत्ततवणिजसंकासो) तपेसा सोनानी म (सव्यो) सर्व (अगणिपरिणओ) PAGन ३५ परिणत (निगोयजीवे) निगोहना । (तहा) मे शते (जाण) orld (एगस्स) सेना (दोण्ह) मेन (तिण्ह व) अथवा नाना (संखिजाण व) अथवा सध्यातना (न पासिउ सक्का) ले २४५ नथी (दीसंति) हेमाय छ (सरीराई) शरी२ (निगोयजीवाणं) निगा। वोन (अण ताणं) मन तन। (लोगागासपएसे) सोना ४ मे प्रदेशमा (निगोयजीव) निगाह छपने (ठवेहि) स्थापित ४२।५ (इक्किक) मे ने. (एवं) २ प्रारे (मविज्जमाणा) स्थापित रामेसा (हवंति) मने छ (लोगा) ४ (अणता) मनन्त (3) qिus શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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