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________________ प्रमेयोधिनी टीका प्र, पद १ सू २० साधारणशरीरबादरवनस्पतिकायिकाः २९५ श्रृङ्गाटकस्य गुच्छः, अनेकजीवस्तु भवति ज्ञातव्या। पत्राणि प्रत्येकजीवानि द्वौ च जीवौ फले भणितौ ॥९॥ टीका-अथ साधारण वनस्पतिकायिकप्रकारान् प्रतिपादयितुमाह-'से किं तं साहारणसरीरवायरवणस्सइकाइया ?' 'से' अथ 'किं तं' के ते, कतिविधा इत्यर्थः, साधारण-शरीर बादरवनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'साहा. रणसरीरबादरवणस्सइकाइया अणेगविहा पण्णत्ता' साधारणशरीरबादरवनस्पतिकायिकाः अनेकविधा:-प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, तानेव अनेकविधानाह-'तं जहा अपए, पणए, सेवाले, लोहिणी, मिहुत्थुहुत्थिभागाय । अस्सकन्नि सीहकत्री (तणमूल) तृणमूल,, (कंदमूले) कन्दमूल, (वंसीमूल) वंशीमूल, (त्ति) इति, (यावरे) और दूसरे (संखिज्ज) संख्यात जीवों वाले, (असं. खिज्जा) असंख्यात जीवों वाले, (बोद्धव्या) जानने चाहिए, (अणंतजीवा य) और अनन्त जीवों वाले। ____ (सिंघाडगस्स) सिंघाडे का, (गुच्छो) गुच्छा, (अणेग जीवा) अनेक जीवों वाला, (उ) तो, (होई) होता है, (नायव्यो) जानना चाहिए, (पत्ता) पत्ते, (पत्तेय जीवा) प्रत्येक जीव वाले, (दोन्नि) दो, (य) और (जीवा) जीय, (फले) फल में (भणिया) कहे हैं। ___टीकार्थ-अब साधारणवनस्पतिकायिक जीवों के भेदों का प्ररूपण करते हैं। प्रश्न है कि साधारण शरीर वाले बादरवनस्पतिकाय के जीय के कितने प्रकार के हैं ? भगवानश्री ने उत्तर दिया-साधारण शरीर वाले वनस्पतिकाय के बादर जीव नाना प्रकार के होते हैं। उन्हें बतलाते हैं-अवक, पनक, शैवाल, स्नुही, मिहत्त्थु, हस्तिभागा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिउंठी, मुसुंढी, रुरु, कंडरिका, जीरु, छीरविराली, (सिंघाडगस्स) सिवाना (गुच्छो) शु२७ (अणेगजीवा) भने योi (उ) तो (होई) राय छ (नायबो) only नये (पत्ता) पान (पत्तेक जीवा) प्रत्ये ७५ पi (दोन्नि) मे (य) मने (जीवा) ७१ (फले) ३मा (भणिया) ४ा छे. ટીકાર્થ—હવે સાધારણ વનસ્પતિ કાયિક જીવેના ભેદની પ્રરૂપણ કરે છે. પ્રશ્ન છે કે સાધારણ શરીરવાળા બાદર વનસ્પતિકાયના જીવ કેટલા प्रा२॥ छ ? શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપ્યો-સાધારણ શરીર વાળા વનસ્પતિકાયના બાદર ७५ मने प्रारना डाय छे. तेयाने तावे छे–२०१४, पन४, सेवाण, स्नुडी, भित्थु, स्तिमा, २५%Axegl', सिsxegl', सिटी, भुसुढी, ३३, ४७६२४१, ७३; छ।२ विसी , GE, ४७१, २, मा, भू, ४- શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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