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प्रज्ञापनासूत्रे कृष्टि३७ रिति चापरा॥४॥ माषपर्णी३८ मुद्गपर्णी ३९ जीवितरसह४० ० रेणुका४१ चैव । काकोली४२ क्षीरकाकोली४३ तथा भङ्गी४४ नखी४५ इति।५। कृमिराशिः ४६ भद्रमुस्ता४७ लागलकी४८ पेलुका४९ इति कृष्णप्रकुल ५० श्य हढः५१ हरतनुका५२ चैव लोयाणी५३॥६॥ कृष्णः कन्दः५४ वनः (वनकन्दः) ५५ मरणकन्द:५६ तथैव खल्लूरः५७। एतेऽनन्तजीयाः, ये चान्ये तथाविधाः।७। तृणमूलं वंशीमूलमिति चापरम् । संख्याता असंख्याता बोद्धव्या अनन्तजीवाश्था। माठरी, (दंती) दन्ती, (इति) इस प्रकार, (चंडी) चण्डी, (किट्टित्ति) कृष्टि, (पावरा) और (दूसरी) __(मासपण्णी) माषपणि, (मुग्गपण्णी) मुद्गपर्णी, (जीवियरसहे) जीवितरसह (य) और (रेणुया) रेणुका, (चेच) और (काओली) काकोली, (खीरकाओली) क्षीरकाकोली, (तहा) तथा, (भंगी) ,गी, (नहीं) नखी, (इय) इस प्रकार,
(किमिरासी) कृमिराशि, (भद्दमुच्छा) भद्रमुक्ता, (णंगलई) लागलिकी, (पेलुगा) पेलुका, (इय) इस प्रकार (किण्हपउले) कृष्णपकुल, (हढ) हढ, (हरतणुया) हरतनुका (चेय) और (लोयाणी) लोयाणी,
(कण्हे कंदे) कृष्ण कन्द, (वज्जे) वज्रकन्द, (सूरणकंदे) सूरणकन्द, (तहेव) तथा, (खल्लूर) खल्लूर, (एए) ये पूर्वोक्त, (अगंतजीवा) अनन्त जोव वाले हैं। (जे यायन्ने तहाविहा) इनके अतिरिक्त अन्य जो इसी प्रकार के हैं । वे सब अनन्तजीवात्मक है।
(मासपण्णी) भाषाणु (मुग्गपण्णी) भुगी (जीवीयरसहे) वित २स (य) मने (रेणुया) २।४॥ (चेच) भने (काओली) teी (खीरकाओली) क्षी२ uateी (तहा) तथा (मंगी) भृगी (नही) नमी (इय) २॥ शते
(किमिरासी) भिराशी (भद्दमुच्छा) समुस्ता (णंगलई) einlesी (पेलुगा) पा (इय) से रीते (किण्ह पउले) ! ५८८ (हढ) ९८ (हरतणुया) २तनु४ (चेव) मने (लोयाणि) सोयाणी
(कण्हेकन्दे) ४९ ६ (बज्जे) १०१४६ (सूरणकंते) सू२४४ (तहेव) तथा (खल्लर) १२ (एए) २॥ पूर्वरित (अगंत जीवा) सनत १ (जे यावन्ने तहा विहा) माना सिवायना भी आव। प्रा२ना छ.
(तणमूल) तृभूस (कंदमूले) ४४ (वंसीमूल) शभूरा (त्ति) धत (यावरे) मन मी (संखिज्ज) सयात ७ वा (असंखिज्जा) २१सयात | १७॥ (बोद्धव्वा) Myan (अणंत जीवा य) मने मन्त । पाणां
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧