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________________ २८८ प्रज्ञापनासूत्रे टीका-अथ कुहणभेदान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं कुहणा ?' 'से' अथ 'किं त' के ते कतिविधा इत्यर्थः कुणा:-कुहणपदार्थाः प्रज्ञताः ? भगवानाह-'कुहणा अणेगविहा पण्णत्ता' कुहणाः कुहणपदार्थाः-भूमिस्फोटनाभिधानाः अनेकविधाः नानाप्रकारकाः, प्रज्ञप्ताः, तानेवाह-'तं जहा' आए काए कुहणे कुणके दव्यहलिया सफाए सज्झाए, छत्तीए, वंसीण, हिताकुरए' तद्यथा-आयं, कार्य, कुहणं, कुनक, द्रव्यहलिका,शफायः, स्वाध्यायः, छत्रोकः, वंशीनए, हिताकुरकम्, एते पदार्थाः देशविशेषे प्रसिद्धाः कुहणपदेन व्यपदिश्यन्ते ते च भूमिस्फोटाभिधानाः कुहणाः अप्कायप्रभृतयः, तथैव-'जे यावन्ना तहप्पगारा' ये चाप्यन्ये तथा प्रकाराः-एवं विधाः सन्ति, तेऽपि सर्वे कुहणपदेन व्यपदेश्याः, प्रकृतमुपसंहरनाह-'सेतं कुहणा' ते एते पूर्वोक्ताः दशभेदाः कुहणाः प्रज्ञप्ताः । जीवों के (तह) उसी प्रकार (होति) हैं (सरीरसंघाया) शरीरसंघात (सेत्तं पत्तेयसरीरबायरवणप्फइया) यह पूर्वोक्त प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक कहे गये हैं ॥१९॥ टीकार्थ--अब कुहण वनस्पति के भेदों की प्ररूपणा करते हैं। प्रश्न किया गया कि कुहण वनस्पति के कितने भेद हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया-कुहण अनेक प्रकार के होते हैं । भूमि को फोड कर निकलनेवाली वनस्पतियां कुहण कहलाती हैं। उनके अनेक प्रकार ये हैंआय, काय, कुहण, कुनक्क, द्रव्यहलिका, शफाय, स्वाध्याय, छत्राक वंशी वंशीन, हिताकुरक, ये सब कुहण कहलाने वाली वनस्पतियां देशविशेष में प्रसिद्ध हैं। ___इनके अतिरिक्त इसी प्रकार की जो अन्य वनस्पतियां हैं, उन्हें भी कहण ही समझना चाहिए। अब उपसंहार करते हुए कहते हैंयह कुहण की प्रज्ञापना हुई। (से तं पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया) २॥ पूर्वरित प्रत्ये४ शरी२ ६२ વનસ્પતિકાયિક કહેલા છે. જે સૂ. ૧૯ છે ટીકા-હવે કહણ નામની વનસ્પતિના ભેદની પ્રરૂપણ કરે છે–પ્રશ્ન પૂછાયે. કે કુહણ વનસ્પતિના કેટલા ભેદ છે? શ્રીભગવાને ઉત્તર આપ્ય-કુહણ અનેક પ્રકારના હોય છે. જમીનને ફાડીને બહાર આવવાવાળી વનસ્પતિઓ કુહણ કહેવાય છે. તેઓના આ અનેક પ્રકાર छ-माय, ४ाय, ७, सुन, द्रव्याऽसि ॥३॥य, स्वाध्याय, छत्र॥, शीन, હિતાકુરક, આ બધી કુહણ કહેવાતી વનસ્પતિ દેશ વિશેષમાં પ્રસિદ્ધ છે. તદુપરાન્ત આવા પ્રકારની જે બીજી વનસ્પતિ છે. તેઓને પણ કુહણ જ સમજવી જોઈએ. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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