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________________ प्रबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१९ समेदवनस्पतिकायनिरूपणम् २८५ हियते, 'सेवाले' - शैवाल: प्रसिद्ध एव, सोऽपि जलोद्भवाद् जलरुहपदेन व्यवहियते, 'कलंबुया' - कलम्बुकाः पानीयोमा स्तृणवस्तु विशेषरूपाः जलरुहपदेन व्यपदिश्यन्ते, 'हढे' हठः -तृणविशेषो जलरुहपदेन व्यपदिश्यते, एवमेव 'कसेरुया' कशेरुका : - 'केशौ ' इति भाषा प्रसिद्धाः कन्दविशेषाः जलरुहपदेन व्यपदिश्यन्ते, 'कच्छभाणी' कच्छभाण्यो जलोद्भवाः जलरुहपदेन व्यपदिश्यन्ते, एवमेव'उप्पले' उत्पलम्, 'पउमे' पद्मम् 'कुमुदे' - कुमुदम्, 'लिणे' नलिनम्, 'सुभए' सुभगम्, 'सुगंधिए' सौगन्धिकम् 'पौंडरीयए' - पुण्डरीकम् - 'महापुंडरीए' महापुण्डरीकम्, 'सयपत्ते' शतपत्रम् 'सहस्सपत्ते' सहस्रपत्रम् ' कल्हारे' कल्हारम 'कोकणदे' कोकनदम्, ' अरविंदे' अरविन्दम्, 'तामरसे' तामरसम्, 'भिसे' भिसम् 'भिसमुणाले ' भिसमृणालम् 'पोक्खले' पुष्करम्, 'पोक्खलत्थिभूए' - पुष्करास्तिभुतम्, एतानि जलोद्भवत्वात् जलरुहपदेन व्यपदिश्यन्ते तानि च प्रायः प्रसिनामक वनस्पति जलरुह है अर्थात् जल में उत्पन्न होती है । अवक वनस्पति जलरुह है अर्थात् जल में उत्पन्न होती है और तृण रूप होती है । पनकभी जल में उत्पन्न होती है, अतः जलरुह कहलाती है सेवाल, जिसे संवार कहते हैं, प्रसिद्ध है जल में उत्पन्न होने से वह जलरुह है । कलंबुया वा कलम्बुका एक प्रकार की तृण वस्तु है जो पानी उत्पन्न होती है । हठ भी एक प्रकार का जल में उत्पन्न होने वाला घास है । कशेरुका को बोलचाल की भाषा में केशौर कहते हैं यह एक प्रकार का कन्द है और पानी में पैदा होता है। कच्छभाणी भी जलज वनस्पति है । इसी प्रकार उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, महपुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, कल्हार, कोकनद, अरविन्द और तामरस, ये सब कमल की अलग-अलग जातियाँ हैं और इन सब की उत्पत्ति भी जल में होती है । भिस भिसमृणाल, पुष्कर, पुष्करास्तिभुक, ये भी जलोत्पन्न होने से जलહાય છે. પનક પણ પાણીમાં જન્મે છે તેથી જલરૂ કહેવાય છે. શૈવાલ (જે સેવાળ છે) તે તા જાણીતાજ છે. પાણીમા ઉગે છે તેથી તે પણ ( जलरुह ) छे. उसा अगर उस मुड मे भर्तनी तृणु वस्तु छे. ने पाणीमां अपने છે, હઠ પણ પાણીમાં ઉત્પન્ન થતું એક જાતનું ઘાસ છે. કશાકને ખેલાતી ભાષામાં કેશેાર કહે છે.આ એક જાતને પુન્દ છે અને પાણીમાં પેદા થાય છે. કચ્છ लाएगी पशु स३३ वनस्पति छे. मेन रीते उत्यक्ष, पद्म, उभुह, नसिन, सुलग सोगन्धिर पुंडरिड, भड्डापुंडरिङ, शतपत्र, सहखपत्र, उदहार आउनह, मने અરિવંદ તામરસ, આ બધી કમળની જુદી જુદી જાતિયેા છે. અને આ બધાની ઉત્પત્તિ પણ પાણીમાં થાય છે. મિસ, મિસમૃણાલ, પુષ્કર, પુષ્કરાતિમુક્ત આ પણ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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