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________________ २६६ प्रज्ञापनासूत्रे मूलम् - अफेया अइमुत्तंग णागल्या कण्हरवल्ली य । संघह सुमणसी विय, जासुवण कुर्विदैवल्ली य ॥१९॥ मुदिय अंबीवल्ली, किण्हछिरौली जयंति गोवाली | पाणी मासावल्ली, गुंजी वल्ली य विच्छाणी ||२०|| सेंसिवी दुगोत्तफुंसिया गिरिकैपण माया य अर्जेणई । दहिफोल्लंइ कागलि मोर्गेली य तह अक्कबोंदीया ||२१|| जे यावन्ना तहप्पगारा । से तं बल्लीओ | ५| छाया - अथ कास्ता वल्ल्यः वल्ल्यः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - पूसफली १ कालिङ्गी २ तुम्बी ३ त्रपुषी ४ च एला ५ लुङ्गी ६ । घोषातकी ७ पण्डोला ८ पञ्चङ्गुली९ आयनीली १० च ॥ १७॥ कङ्गूका ११ कण्डकिका १२ कर्काटकी १३ कारवेल्लकी १४ सुभगा १५ । कुयवाया १६ वागली १७ पापवल्ली १८ तथा शब्दार्थ - ( से किं तं बल्लीओ ? ) वल्लियां कितने प्रकार की हैं ? (अणेगविहाओ ) अनेक प्रकार की (पण्णत्ताओं) कही हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं - ( पूसफली) पूसफली, (कालिंगी) कालिङ्गी, (तुंवी) तुम्बी, (तडसी) पुषी, (एल) एला, (वालुंकी) बालुंकी, (घोसाडइ) घोषातकी, (पंडोला ) पण्डोला, (पंचुंगुलि) पंचांगुली (आयणीली) आयनीली, ये चल्ली जातकी वनस्पतियां देश-विशेष में प्रसिद्ध हैं । इन्हें स्वयं समझलेना चाहिए | इसी प्रकार ( कंग्या कंगूका, (कंडुइया) कण्डकिका, (कक्कोडई) कर्कटिकी, ( कारियल्लई) कारवेल्लकी, (सुभगा ) सुभगा, (कुयवाघ) कुयवाया, (वागली) वागली, (पाववल्ली) पापचल्ली, (तह) तथा, (देवदाली य) और देवदाली, देशविशेष में प्रसिद्ध इन लताओं को स्वयं ही समझ लेना चाहिए । शब्दार्थ - (से किं तं बल्लीओ ?) पहिलो डेंटला अारनी छे ? ( अणेग विहा) भने प्रहारनी (पण्णत्ताओ) उडी छे (तं जहा ) तेथे या अहारे छे (qanet) youşal (af) slavil (g) g'ul (aseft) ayul (cm) मेला (वालु की) वासु डी (घोसाडइ) घोषातडी (पंडोल) पडोसा (पंचगुलि) पंथागुदी (आयणीली) मायनीसी मा वदसी वनस्पतियो देश विशेषभां प्रसिद्ध છે. તેને જાતે સમજી લેવા જોઇએ. मान रीते (कंगूया) डेंगू | ( कंडुइया) 53381 (कक्डाडइ) 3|3डी ( कारियल्लइ) अश्वेदाडी- अरेली (सुभगा ) सुलगा (कुयवाय) हुयवाया (बागली) पागसी (पाववल्ली) पाय पल्ली ( तह) तथा ( देव दालीय) भने देवहाजी देश विशेषभां પ્રસિદ્ધ લતાઓને જાતે સમજી લેવી જોઇએ. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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