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________________ २४६ प्रज्ञापनासूत्रे __टीका-अथ प्रत्येकशीररबादरवनस्पतिकायिकप्रकारान् प्ररूपयितुमाह-'से कि तं पत्तेय सरीर बायरवणस्सइकाइया ?' 'से' अथ 'किं तं'-के ते कतिविधाइत्यर्थः, प्रत्येकशरीरबादरवनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-पत्तेय सरीरबायरवणस्सइकाइया दुवालसविहा पण्णत्ता' प्रत्येकशरीरबादरवनस्पतिकायिका द्वादशविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा-रुक्खा१ गुच्छा२ गुम्मा३ लताय४वल्ली य५ पयगा चेव६। तणवलय हरिय ओसहि जलरुह कुहणा य१२ बोद्धव्या ॥१॥' ___ 'तं जहा' -तद्यथा-'रुक्खा'-वृक्षा:-आम्रादयः१, "गुच्छा'-गुच्छा:-पृन्ताकी प्रभृतयः२, 'गुम्मा-गुल्मानि-नवमालिका प्रभृतीनि३, "लताय लताश्व-चम्पकलतादयः४ वल्लीय' वल्यश्च-कूष्माण्डीत्रपुषी प्रभृतयः५, 'पव्वगा चेव' पर्वगाश्चैव इक्ष्वादयः६ 'तणवलयहरिय ओसहि जलरुह कुहणाय बोद्धव्वा'-तृण वलय बादरवनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं (दुवालसविहा) बारह प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं-(१) रुक्खा (वृक्ष) (२) गुच्छा (गुच्छ) (३) गुम्मा (गुल्म) (४) लया (य) और (लता) (५) वल्ली (य) और वल्ली (६) (पव्यगा) पर्यग (चेय) और (७) तण (तृण) (८) वलय (वलय) (९) (हरित) हरित (१०) (ओसहि) औषधि (११) जलरुह (जलरुह) (१२) कुहणा (य) और (कुहण) बोद्धव्या (जानने चाहिए)॥१९॥ टीकार्थ-अब प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा की जाती है-प्रश्न किया गया कि प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक बारह प्रकार के हैं। वे बारह प्रकार ये हैं-(१) आम्र आदि वृक्ष (२) गुच्छ-बैंगन आदि के पौधे (३) गुल्म-नवमालिका वगैरह (४) लता-चम्पकलता आदि (५) चल्ली-कूष्माण्डी त्रपुषी आदि की सता मने. (५) (वल्लिय) मने पक्षी (६) (पव्यगा पर्वग) चेव मन (तण) तय (८) (वलय) १सय (6) (हरित) रित. (१०) (ओसहि) मोषध (११) (जलरुह) स३९ (१२) कुहणा य) वनस्पति विशेष (बोद्धव्या) MY नये. ॥सू. १६॥ ટીકાઈ- હવે પ્રત્યેક શરીર બાર વનસ્પતિ કાયિકની પ્રરૂપણા કરાય છે શ્રી ગૌતસ્વામીથી પ્રશ્ન કરો કે પ્રત્યેક શરીર બાર વનસ્પતિ કાયિક જીવ કેટલા પ્રકારના છે? શ્રી ભગવાને ઉત્તર અમે- પ્રત્યેક શરીર બાર વનસ્પતિ કાયિક બાર પ્રકારના છે. તે બાર પ્રકાર આ પ્રમાણે છે. (૧) આમ્ર આદિ વૃક્ષ (૨) ગુચ્છ રીંગણ વિગેરેના છોડ (૩) ગુલ્મ (नवभासि। विगैरे) (४) सत-२५४३८ विगेरे (५) सी-भारी माहिनी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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