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________________ २३८ प्रज्ञापनासूत्रे प्रमुखशतसहस्राणि, पर्याप्तकनिश्रया अपर्याप्तका व्युत्क्रामन्ति, यत्र एकस्तत्र नियमात् असंख्येयाः। ते एते बादरवायुकायिकाः। ते एते वायुकायिकाः ॥सू.१७॥ टीका-अथ वायुकायिकभेदान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं वाउकाइया?' 'से'-अथ 'किं तं' के ते कतिविधा इत्यर्थः वायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवान् आह-याउकाइया दुविहा पण्णत्ता' वायुकायिका द्विविधाः द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा-मुहुमवाउकाइया य, बायरवाउकाइया य' सूक्ष्मवायुकायिकाश्च, बादरवायुकायिकाश्च, ‘से किं तं सुहुमवाउकाइया ?' 'से' अथ 'किं तं' के ते-कतिविधाः सूक्ष्मवायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'मुहुमवाउकाइया दुविहा पण्णत्ता' सूक्ष्मवायुकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा-'पज्जत्तगसुहुमवाउकाइया य, अपज्जत्तगमुहुमवाउकाइया य' तद्यथा-पर्याप्तकसूक्ष्मवायुकायिकाश्च, अपर्याप्तकयप्पमुहसयसहस्साई) संख्यात लाख योनियां हैं (पज्जत्तगणिस्साए) पर्याप्तक के आश्रय से (अपज्जत्तगा) अपर्याप्त (चक्कमंति) उत्पन्न होते हैं (जत्थ) जहां (एगो) एक है (तत्थ) वहां (नियमा) नियम से (असंखेज्जा) असंख्यात हैं (से तं बायरयाउकाइया) यह बाद वायुकायिकों की प्ररूपणा हुई (से तं वाउकाइया) यह वायुकायिकों की प्ररूपणा पूरी हुई ॥१७॥ टीकार्थ-अब वायुकाय के भेदों की प्ररूपणा करते हैं । प्रश्न किया गया-वायुकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् उत्तर फर्माते हैं-वायुकायिक जीव दो प्रकार के होते हैं सूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक। सूक्ष्म वायुकायिक कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने उत्तर दियासज्यात ५ योनियो छ (पज्जत्तगणिस्साए) ५सिना आश्रये (अपज्जत्तगा) मर्यात (वक्कमंति) उत्पन्न थाय छ (जत्थ) ori (गो) मे छ (तत्थ) त्यां (नियमा) नियमथी (असंखेज्जा) मस ज्यात छ (से तं बायरवाउकाइया) मा मा४२ वायुयानी ५३५। ५४ (से त्तं बाउकाइया) २॥ वायु यिनी પ્રરૂપણા પુરી થઈ. એ સૂ. ૧૭ છે ટીકાઈ–હવે વાયુકાચિકેના ભેદની પ્રરૂપણ કરે છે પ્રશ્ન થયે કે-વાયુ કાયિક જીવ કેટલા પ્રકારના છે? શ્રી ભગવાન ઉત્તર ફરમાવે છે–વાયુકાયિક જીવ બે પ્રકારના હોય છે. સૂમ વાયુકાયિક અને બાદર વાયુકાયિક. સૂમ વાયુકાયિક કેટલા પ્રકારના છે? શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપ્ય-સૂમ વાયુકાયિક જીવ પણ બે પ્રકારના છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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