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________________ प्रमेययोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१५ अप्कायिकजीवभेदनिरूपणम् २२३ यिका द्विविधा प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तक सूक्ष्माप्कायिकाश्च अपर्याप्तक सूक्ष्माष्कायिकाश्च । ते एते सूक्ष्माप्कायिकाः । अथ के ते बादराप्कायिकाः ? बादाका. यिका अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अवश्यायः१ हिमकम् २ महिका३ करकः४ हरतनुकः५ शुद्धोदकम् ६ शीतोदकम्७ उष्णोदकम्८ क्षारोदकम् ९ खट्टोदकम्ईषदम्लोदकम् १० अम्लोदकम् ११ लवणोदकम् १२ वारुणोदकम्१३ क्षीरोदकम् ११४ घृतोकम् १५ क्षोदोदकम् १६ रसोदकम् १७, ये चान्ये तथा प्रकारास्ते (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (पज्जत्तगसुहुम आउकाइया य) पर्याप्तक सूक्ष्म अपूकायिक और (अपज्जत्तगसुहम आउकाइया य) अपर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक (से त्तं सुहम आउकाइया) यह सक्षम अकायिक की प्ररूपणा हुई (से किं तं बायर आउकाइया) बादअप्कायिक कितने प्रकार के हैं (अणेगविहा) अनेक प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (उस्सा) ओस (हिमए) हिम (महिया) महिका (करए) ओले (हरतणुए) भूमि को फोड कर घास पर जमा होने वाला जल बिन्दु (सुद्धोदए) शुद्धोदक (सीओदए) शीतोदक (उसिणोदए) उष्ण जल (खारोदए) खाराजल (खट्टोदए) कुछ खट्टा पानी (अंबिलो. दए) खट्टा पानी (लवणोदए) लवण समुद्रकापानी (वारुणोदए) वरुण वर समुद्र का पानी (खीरोदए) खीर समुद्र का पानी (घओदए) घृतवर समुद्र का पानी (खोओदए) इक्षुवर समुद्र का पानी (रसोदए) रसोदक पुष्करयर समुद्र आदि का पानी । पण्णत्ता) मे ४२॥ ४॥ छ (तं जहा) ते २॥ प्रमाणे छ. (पज्जत्तगसुहुमआउकाइया य) पर्याप्त सूक्ष्म २५५४॥यि४ २मने (अपज्जत्तग सुहुमआउकाइया य) अपर्याप्त सूक्ष्म २मय (से त्तं सुहुमआउकाइया) २सूक्ष्म २५५यिनी પ્રરૂપણું થઈ છે એમ સમજવું જોઈએ. (से कि तं बायरआउकाइया) मा४२ २२५४यि । प्रा२॥ छ ? (अणेगविहा) मा२मयि मने प्रा२न(पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) छ २॥ ४ारे छ. (उस्सा) सास (हिमए) डिम (महिया) भडिमा (करए) ४२॥ (हरतगुए) भीनने डीन घास ५२ मत मिन्दुस। (सुद्धोदए) शुद्धो६४ (सीओदए) शीत (उसिणोदए) १२ पाणी (खारोदए) ॥३° पाणी (खट्टीदय) xisx माटु (अंबिलोदए) माटु ! (लवणोदए) ॥२समुद्रनु ५९ (वारुणोदए) १३४१२ समुद्रनु ५५ (खीरोदए) क्षीर समुद्रनु ५५ (घओदए) धृत१२ समुद्रनु पाए। (खोओदए) क्षु१२ समुंद्रनु ५५ (रसोदए) २४४ ५८४२१२ समुद्रनु ५५ विगेरे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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