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________________ २०२ प्रज्ञापनासूत्रे यिकाः । अथ के ते बादरपृथिवीकायिकाः ? बादरपृथिवीकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-श्लक्ष्णबादरपृथिवीकायिकाश्च, खरबादरपृथिवीकायिकाश्च । अथ के ते श्लक्ष्णबादरपृथिवीकायिकाः ? श्लक्ष्णबादरपृथिवीकायिकाः सप्तविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कृष्णमृत्तिका१, नीलमृत्तिकार, लोहितमृत्तिका३, हारिद्रमत्तिका४, शुक्लमृत्तिका ५, पाण्डुमृत्तिका६, पनकमृत्तिका७ । ते एते श्लक्ष्णबादरपृथिवीकायिका । अथ के ते खरवादरपृथिवीकायिकाः ? खरवादरपृथिवी(से त्तं सुहुमपुढयिकाइया) ये सूक्ष्मपृथ्वीकायिक की प्रज्ञापना हुई। (से किं तं बायरपुढविकाइया) बादर पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सण्हबायरपुढयिकाइया य) श्लक्ष्ण-चिकने बादर पृथ्वीकायिक (खरबायरपुढविकाइया य) खरबादर पृथ्वीकायिक (से किं तं सहवायरपुढयिकाइया) श्लक्ष्णवादरपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के हैं ? (सत्तविहा) ये सात प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (किण्हमट्टिया) काली मिट्टी (नीलमट्टिया) नीली मिट्टी (लोहियमट्टिया) लाल मिट्टी (हालिद्दमट्टिया) पीली मिट्टी (सुकिल्लमटिया) सफेद मिट्टी (पांडुमटिया) पाण्डु वर्ण की मिट्टी (पणगमडिया) पनकमिट्टी (से तं सण्यायर पुढविकाइया) यह श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय की प्ररूपणा हुई। ___ (से किं तं खरबायरपुढयिकाइया) खरबादर पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं (अणेगविहा) अनेक प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (से कि तं बायरपुढविकाइया) वे ॥४२ पृथ्वीयि ८८८ ॥२॥ छ ? (बायरपुढवीकाइया) मा४२ पृथ्वीय (दुविहा) में प्र४२॥ (पण्णत्ता) ४ह्या छ (तं जहा) तेम। ॥ प्रारे (सण्ह बादरपुडवीकाइया य) सक्ष-५४९॥ मा४२ पृथ्वीय (खरबायरपुढविकाइया य) १२ ॥४२ पृथ्वीय __ (से कि तं सहबायरपुढविकाइया) क्षY मा४२ पृथ्वीxि ॥ प्रा२ना ४ा छ ? स६ मारपृथ्वियि४ (सत्तविहा) सात प्रारना (पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) तो ॥ शते (किण्हमत्तियों) ४ी भाटी (नीलमत्तिया) पाहणी भाटी (लोहियमट्टिया) स माटी (हालिद्दमट्टिया) पीजी भाटी (सुक्किल्लमट्टिया) स३६ भाटी (पांडुमट्टिया) पांडगनी भाटी (पणगमटिया) पन४ माटी (से तं सह बायरपुढविकाइया) २॥ स मा४२ पृथ्वीકાયિકની પ્રરૂપણું થઈ. (से कि तं खरबायापुढविकाइया) हु मगवन् २माहरवीयि उटा प्रश्ना छ ? (खरबायरपुढवीकाइया) १२ ॥४२ पृथ्वीय (अणेगविहा) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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