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________________ -- - प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.९ रूपी अजीवप्रज्ञापना अपि२। रसतस्तिक्तरसपरिणता अपि१, कटुकरसपरिणता अपि२, कषायरसपरिणता अपि३, अम्लरसपरिणता अपि४, मधुररसपरिणता अपि५। स्पर्शतः कर्कश. स्पर्शपरिणता अपि१, मृदुकस्पर्शपरिणता अपि२, गुरुकस्पर्शपरिणता अपि३. लघुकस्पर्शपरिणता अपि४, शीतस्पर्शपरिणता अपि५, उष्णस्पर्शपरिणता अपि६, स्निग्धस्पर्शपरिणता अपि७, रूक्षस्पर्शपरिणता अपि८ २०॥१००॥ सैपारूप्यजीव प्रज्ञापना । सैवा-अनीव प्रज्ञापना ॥सू०९॥ ___ (रसओ) रस से (तितरसपरिणया वि) तिक्त रस परिणाम वाले भी हैं (कडुयरसपरिणया वि) कटुक रस परिणाम वाले भी हैं (कसायरसपरिणया वि) कषाय रस परिणाम वाले भी हैं (अंबिलरसपरिणया वि) आम्ल रस परिणाम वाले भी हैं (महुररसपरिणया वि) मधुर रस परिणाम वाले भी हैं। ___ (फासओ) स्पर्श से (कक्खडफासपरिणया वि) कर्कश स्पर्श परिणामवाले भी हैं (मउयफासपरिणया वि) मृदु स्पर्श परिणामवाले भी हैं (गरुयफासपरिणया वि) गुरु स्पर्श परिणामवाले भी हैं (लहुयफासपरिणया वि) लघु स्पर्श परिणामयाले भी हैं (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्श परिणामवाले भी हैं (उसिणफासपरिणया वि) उष्ण स्पर्श परिणामवाले भी हैं (णिद्धफासपरिणया वि) स्निग्ध स्पर्श परिणामवाले भी हैं लुक्खफासपरिणया वि) रूक्ष स्पर्श परिणामवाले भी हैं। (से तं रूवि अजीच पन्नवणा) यह रूपी अजीव की प्रज्ञापना हुई (से त्तं अजीवपन्नवणा) यह अजीव की प्रज्ञापना हुई सू०॥९॥ (दुभिगंधपरिणया वि) दुर्गन्ध परिमाण ५५ . (रसओ) २सथी (तित्तरसपरिणया वि) तित २१ परिणामवाण छ (कडुयरसपरिणया वि) ४४४ २२ ५२मा ५ छ (कसायरसपरिणया वि) उपाय २८ परिमाणां पशु छ (अंबिलरसपरिणया वि) माटा रसना परिम पाni पण छ (महुररसपरिणया वि) मधु२ २स परिणामवाण ५५ . (फासओ) २५१५ थी (कक्खडफासपरिणया वि) ४४५ २५०° परिणाम ५५ छ (मउयफासपरिणया वि) मृदु२५श परिभाजi पण छ (गरुयफासपरिणया वि) शु३ २५० ५२४ भयाणां पार छ (लहुयफासपरिणया वि) Aधु२५श परिणामini ५५५ छ (सीयफासपरिणया वि) शीत २५२ ५२माण ५ छ (उसिणफासपरिणया वि) २५ परिणामवानां ५५ छे (णिद्धफास परिणया वि) नि५ २५२ ५२णामा ५५ छ (लुप खफासपरिणया वि) રૂક્ષ સ્પર્શ પરિણામવાળાં પણ છે. (सेत्तं रूवि अजीवपन्नवणा) २॥ शते २॥ ३पी २५७पनी प्रज्ञापना ई (से तं अजीवपन्नवणा) २ ते २७वनी प्रज्ञापन। ४ी छ, ॥ सू. ४ ॥ प्र०२० શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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