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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.८ रूपी अजीव प्रज्ञापना १४९ लघुस्पर्शपरिणता अपि४, शीतस्परीपरिणता अपि५, उष्णस्पर्शपरिणता अपि६, स्निग्धर्शपरिणता अपि७, रूक्षस्पर्शपरिणता अपि ८|२०| ये संस्थान स्त्र्यत्रसंस्थानपरिणता ते वर्णतः कालवर्णपरिणता अपि १, नीलवर्णपरिणता अपिर, लोहितवर्णपरिणता अपि हारिद्रवर्णपरिणता अपि४, शुक्लवर्णपरिणता अपि ५ । गन्धतः सुरभिगन्धपरिणता अपि १, दुरभिगन्धपरिणता परिणाम वाले भी हैं ( मउयफासपरिणया वि) मृदु स्पर्श परिणाम वाले भी हैं (गरुयफासपरिणया वि) गुरु स्पर्श परिणाम वाले भी हैं ( लहुयफा सपरिणया वि) लघु स्पर्श परिणाम वाले भी हैं (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्श परिणाम वाले भी होते हैं (उसिणफासपरिणया वि) उष्ण स्पर्श परिणाम वाले भी हैं (गिद्धफासपरिणया वि) स्निग्ध स्पर्श परिणाम वाले भी हैं (लुक्खफासपरिणया वि) रूक्ष स्पर्श परिणाम वाले भी हैं। (जे) जो पुल (संठाणओ) संस्थान से (तंसठाणपरिणया) त्रिकोण संस्थान परिणाम वाले हैं (ते) वे (वण्णओ) वर्ण से (कालवण्णपरिणया वि) काले वर्ग परिणाम वाले भी हैं (नीलवण्णपरिणया वि) नीले वर्ण परिणाम वाले भी हैं (लोहियवण्णपरिणया वि) लाल वर्ण परिणाम वाले भी हैं ( हालिद्दवण्णपरिणया वि) पीले वर्ण परिणाम वाले भी हैं (सुक्किल्लवण्णपरिणया वि) श्वेत वर्ण परिणाम वाले भी हैं (गंधओ) गंध से (सुग्मगंघपरिणया चि) सुगंध परिणाम वाले छे (मउयफासपरिणया वि) भृहु स्पर्श परिणाभवानां पशु छे ( लहुयफास परिणया वि) लघु पशु परिणामवाणां पशु छे (गरुयफासपरिणया वि) गु३ स्पर्श' परिणाभवाणां पशु छे (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्श परिणामवाणां छे (उसिणफासपरिणया वि) उष्णू स्पर्श परिणामवाणां पशु छे (गिद्धफास परिणया वि) स्निग्ध स्पर्श परिणामवाणां पशु छे ( लुक्खफासपरिणया वि) રૂક્ષ સ્પર્શી પરિણામવાળાં પણ છે. (जे) ने युद्दगसेो (संठाणओ) संस्थानथी (तं संठाणपरिणया) त्रिशु संस्थान परिणामवाणां छे (ते) तेथे (वण्णओ) २४रीने (कालवण्णपरिणया वि) आणा रंगना परिणाभवानां पशु छे (नीलवण्ण परिणया वि) सीसा रंगना परिणाभवाणां पशु छे (लोहियवण्णपरिणया वि) सास रंगना परिणाभवाजी पशु छे (हालिद्दवण्णपरिणया वि) पीजा रंगना परिणामवाणां पशु छे (सुकिल्ल वण्णपरिणया वि) श्वेत वर्षा परिणामवाणां पशु छे. (गंधओ) गंधथी (सुभिगंधपरिणया वि) सुगंध परिणाभवानां पशु छे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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