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________________ ९८० जीवाभिगमसूत्रे भिसंतकडक्खसुणिरिक्खगाणं-जुतप्पमाणप्पधाणलक्खणपसत्थरमणिज्जगग्गरगलसोभिताणं-धग्धरगसुब दकंठपरिमंडियाणं' पीवरोरुणा वर्तिता गोलाकारसुसंस्थाना कटिर्येषाम् आलंबे उपरितनदेशे आधारे यथा प्रलंबन्ते तथा प्रलम्बलक्षणप्रमाणेन युक्ताः प्रशस्ता रमणीया ये वालास्ते गण्डे येषाम्, समखुरवालधारिणाम् समाः कदाचित्कभेद शून्याः खुरा वालाश्च तेषां धारिणो ये तेषाम्, समलि खितानीव तीक्ष्णाग्राणि शृङ्गाणि येषाम्, तनुसूक्ष्मसुजातस्निग्धलोम्नां छवेर्धरास्तेषाम्, उपचितो वृद्धिंगतो मांसलश्च ताभ्यां प्रतिपूर्णकन्धस्य प्रदेशेन सुन्दराणाम्, वैडूर्यवदूभासमानकटाक्षैः मुनिरीक्षणं येषाम् तेषाम्, युक्तं-समुचितं यत्प्रमाणं तस्य प्रधानलक्षणैः अतएव प्रशस्तरमणीयैर्गगरैः आभूषणविशेषैर्गले शोभासंजाता जो सीगों के अग्रभाग है वे ऐसे हैं जैसे मानों घिसकर ही चिकने एवं तीक्षण किये गये हो 'तणुसुहुमसुजातणिद्धलोमच्छविधराणं' इनके शरीर ऊपर जो रोमराजि है वह छवि कान्ति युक्त है-तनु-पतली है और सूक्ष्म-छोटी २ है 'उवसितमंसलविसालपडिपुण्णखंधपएससुंदराणं' इनके जो स्कंध प्रदेश हैं वे उपचित हैं परिपुष्ट हैं मांसल हैंमांस से भरे हुए हैं और सुजात हैं इनसे इनकी अधिक सुन्दरता बढ़ गई है 'वेरुलियभिसंतकडक्खसुणिरिक्खणाणं' इनकी जो चितवन है वह वैडूर्य मणि के जैसे चमकीले कटाक्षों से युक्त है 'जुत्तप्पमाणप्पधाणलक्खणपसत्थरमणिज्जगग्गरगलसोभिताणं' इनके गलों में समुचित आकार में बने हुए होने के कारण रमणीय ऐसे गर्गरों से-आभूषण विशेषों से शोभा की वृद्धि हो रही है 'घग्घरसुबद्धकंठपरिमंडियाणं' गर्गर नामके आभूषणों के साथ २ इनके गलों में घर्घर તેમના શીંગડાના જે અગ્રભાગો છે તે એવા છે કે જાણે ઘસીને જ ચીકણા भने तीक्ष्य मानावामां आवेस डाय, 'तणु सुहुम सुजातणिद्धलोमच्छविधराणं' તેઓના શરીરની ઉપર જે મ પંક્તિ છે, છવિ-કાતિ યુક્ત છે. તેનું पातजी छ. मने सूक्ष्म-नानी नानी छ. 'उवचियमंसलविसालपडि पुण्णकंधपएससुदराणं' तमना २ २४५ प्रश। छे ते पयित छ. परिपुष्ट છે, માંસલ છે. અર્થાત્ માંસથી ભરેલા છે. અને સુજાત છે. તેનાથી તેઓની सुदरता धारे वधी गये। ४॥य छ. 'वेरुलियभिसंतकडक्खसुणिरिक्खणा જો તેમના જે ચિંત્વનું છે તે વૈર્ય મણિના જેવા ચમકીલા કટાક્ષેથી युक्त छ. 'जुत्तप्पमाणप्पघाणलक्खणपसत्थरमणिज्जग्गरगलसोभिताणं' तमाना ગળામાં સુંદર આકારના બનેલા હોવાના કારણે રમણીય એવા ગગરથી अर्थात् माभूषण विशेषथी शालाना पधारे। २७ २८ . 'घग्घरसुबद्धकंठपरिमंडियाणं' गर्ग नाभन भूषयानी साथ तमना गणानां धर नाम જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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