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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ११४ चन्द्र विमानवाहकदेव संख्यादिनि० ९७९ मित्तल लिय पुलियचक्क वालचवलगव्वितगईणं' चङ्क्रमितललितपुलितचक्रवालचपगर्वितगतीनाम् चंक्रमिता ललिता (कुटिला सविलासा ) पुलिता - आकाशे उत्पतितुमिच्छेव - चक्रवालं चक्राकारभ्रमणं तद्वत् चलचपला गर्विता गतिर्येपां तेषाम्, 'पीवरोरुवट्टियमसंठितकडीणं - ओलंबलं बलक खणपमाणजुत्तपसत्थर मणिज्जवालगंडाणं - समखुरवालधारीणं- समलिहियतिक्खग्गसिंगाणं- तणुमुहुमसुजातगिद्धलोमच्छविधराणं- उवचितमंसलविसालपडिपुण्णखंधपए सतुंदराणं-वेरुलिय कुछ २ वे नीचे की और झुके हुए भी है 'चकमितललितपुलियचक्कवालचवलगव्वितगतीणं' इनकी जो गति - चाल है वह चंक्रमित है, ललित है कुटिल है विलास युक्त है, पुलित आकाश में ये मानों उड जाना चाहते है ऐसी है और गर्व से भरी हुई सी जिस प्रकार की गति भमूडे की होती है ऐसी ही इनकी गति चपलता आदि विशेषणों से भरी है 'पीवरोरुवट्टियसुसंठितकडीणं' इनका कटिभाग पीवर है पुष्ट है और जंघा के जैसा गोलाकार संस्थान वाला है 'ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्तपसत्थर मणिज्जवालगंडाणं' इनके कपोलों पर जो बाल हैं रोमराजि हैं वे एकसी कतार में स्थिर हैं-छोटे बड़े नहीं है अपने प्रमाण में एक से लम्बे हैं अतः बड़े अच्छे लगते हैं 'समखुरबालधारीणं' इनके खुर एक से हैं छोटे बड़े नहीं हैं तथा पूछ भी शरीर के आकार के प्रमाणानुसार जितनी लम्बी आदि होनी चाहिये उतनी है छोटी या बडी नहीं है 'समलिहिततिक्खग्गसिंगाणं' इनके અને પ્રમાણમાં ઉન્નત છે તેમજ સાથે સાથે કંઇક કંઇક તે નીચેની તરફ नभेला छे. 'चंकमितललितपुलियचक्कवालचवलगव्वितगतीण' तेमानी ने गति छेयाद छे, ते यभित छे, ससित छे, टिस छे, विलास युक्त छे. युक्षित અર્થાત્ જાણે તેએ આકાશમાં ઉડવા ઇચ્છે છે, એવી છે. અને ગર્વથી ભરેલી જેવી છે જે પ્રમાણે ભમરાની ગતિ હાય છે એવી તેમની ગતિ ચપલતા વિગેરે विशेषाशेो वाणी होय छे. 'पीवरोरुवट्टियसुसंठितकडीण' तेमना उभ्भरता लाग પીવર છે, પુષ્ટ છે. અને જાંઘના જેવા ગોળ આકાર હાય છે તેવા આકાર વાળા होय छे. 'ओलंबलंब लक्खणपमाण जुत्तपसत्थ रमणिज्जवालगंडाण' तेभना ज्योस ભાગા પર જે વાળ છે, રામરાજી, છે. તે એક સરખી કતાર બદ્ધ છે. નાની મેાટી નથી. પેાતાના પ્રમાણમાં એક સરખા છે તેથી તે ઘણાજ સુ ંદર લાગે છે. 'समखुरवालधारीण' तेभनी भरियो मे सरणी छे नानी भोटी नथी. तथा તેમના પૂછ પણ શરીરના આકારના પ્રમાણ અનુસાર જેટલી લબાઇ વિગેરે होवी लेामे भेटली छे, नानी ऐ भोटी नथी. 'समलिहिततिक्खग्गसिंगाणं' જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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