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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३ सू. ५७ विजयद्वारपार्श्व स्थितनैषेधिषयाः नि० ८१ करेण तान प्रदेशान आपूर्यमाणानि आपूर्यमाणानि श्रियोपशोभितानि तिष्ठन्तीति । 'तेसि णं पासायवर्डिसगाणं ' तेषां खलु प्रासादावतंसकानाम् ' उपि बहवे अट्ठ मंगलगा पन्नत्ता' उपरि- ऊर्ध्वभागे बहूनि अष्टमङ्गलकानि प्रज्ञप्तानि 'सोत्थिय तव जाव छत्ता' स्वस्तिक 'सौवस्तिकपताका छत्रातिच्छत्रणीति ।। सू. ५६॥
मूलम् - विजयस्स णं दारस्स उभयो पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो तोरणा पन्नत्ता, ते णं तोरणा णाणामणिमया तव जाव अट्ट मंगलगा य छत्तातिछत्ता । तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सालभंजियाओ पन्नत्ताओ, जहेव णं हेट्टा तहेव तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो नागदंता पन्नत्ता, ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिया तहेव, तेसु णं णागदंत एसु बहवे
२ रहते हैं यही भाव 'इसिमन्नमन्नमसंपत्ता' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया गया है बार २ ये विशिष्टरूप से भी हिलते हैं बार बार ये कंपित भी होते हैं । इस स्थिति में इन से जो शब्द निकलता है वह उदार होता है मनोज्ञ होता है मनोहर होता है एवं कर्ण और मनको अत्यंत शांति पहुंचाने वाला होता है इससे वहां का इनके आसपासका पूरा प्रदेश वाचालित बना रहता है ये सब मुक्तादाम अपने अनुपम सौन्दर्य से बहुत ही सुहावने लगते हैं । 'तेसिणं पासायवडिगाणं उप' इन प्रासादावतंसकों के उर्ध्वभाग में 'बहवे' अनेक प्रकार के 'अट्टमंगलगा पन्नत्ता' आठ मंगलद्रव्य कहे गये हैं । उन मंगल द्रव्यों के नाम 'सोत्थिय तहेव जाव छत्ता' स्वस्तिक से लेकर छत्रातिछत्र तक जैसे पीछे प्रकट किये गये हैं वैसे ही है | सू० ५६ ॥
दूर रहे छे. मेन लाव 'इसिमन्नमन्नमसंपत्ता' से सूत्रपाठथी प्रगट उरवामां આવેલ છે. વારંવાર એ વિશેષ પ્રકારથી પણ હલે છે. વારંવાર તે ક ંપિત પણ થાય છે. એ વખતે એમાંથી જે શબ્દો નીકળે છે, તે ઉદાર હૈાય છે. મનેાજ્ઞ હાય છે. મનહર હાય છે. તેમજ ક અને મનને અત્યંત શાંતી કારક હાય છે. તેથી ત્યાંના તેની આસપાસના તમામ પ્રદેશ વાચાલિત અનેલ રહે છે. આ अधी भुताहाभो पोताना अनुपम सौंदर्यथी धीर सोडामणी दागे छे. 'तेसिं पासा यव डिंसगाणं उपिं मे प्रसाहात सनी उपर 'बहवे' मनेड प्रहारना 'अट्ठ मंगलगा पन्नता' आई मंगल द्रव्य उडेवामां आवे छे. मे मंगल द्रव्योनी नाभा 'सोत्थिय तहेव जाव छत्ता' स्वस्तिथी सहने छत्रातिछत्र सुधी भेस પહેલા કહેવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણે અહિ' પણ સમજી લેવા, ૫ સૂ. ૫૬ ૫
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જીવાભિગમસૂત્ર