________________
___ जीवाभिगमसूत्रे बढे०' सूर्यवरावभासं खलु समुद्रं देववरो नाम द्वीपो वृत्तो वलयाकारसंस्थानसंस्थितः सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्य तिष्ठति स हि-समचक्रवालसंस्थितः नो विषमचक्रवालसंस्थितः, देवो भदन्त ! द्वीपः कियता चक्रवालविष्कम्भेण परिक्षेपेण च प्रज्ञप्तः ? हे गौतम ! असंख्येययोजनशतसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण तान्येव परिक्षेपेण च प्रज्ञप्तः, सर्व पूर्ववत्-वर्णनम् वैशिष्टयं देवद्वीपे देवभद्र देवमहाभद्रौ महर्द्धिको यावत् पल्योपमस्थितिको पविसतः । देवोदः समुद्रो वृत्तोवलयाकारसंस्थानेन संपरिक्षिप्य देवद्वीपं सर्वतः समन्तात्तिष्ठति पूर्ववत् 'देवोदे 'सूरवरावभासं गं समुदं देवो नाम दीवे वट्टे' सूर्यवरावभाससमुद्र को चारों ओर से घेरे हुए देव नामका द्वीप है यह द्वीप वृत्त है और गोलवलय के जैसे संस्थान वाला है यह द्वीप भी समचक्रवाल वाला है विषमचक्रवाल वाला नहीं है इसके समचक्रवाल का विष्कम्भ असंख्यात लाख योजन का है और परिधि इसकी तीन गुणी अधिक है
और सब कथन इस सम्बन्ध में पूर्व के ही जैसा है-यहां देवभद्र और देव महाभद्र नाम के दो देव रहते है ये दोनों महर्दिक आदि विशेषणों वाले है यावत् एक पल्योपम की इनकी स्थिति है देवद्वीप को देवोद नामका समुद्र चारों ओर से घेरे हुए है यह भी वृत्त-गोल-है
और गोल वलय के जैसे संस्थान वाला है इस सम्बन्ध में और सब कथन पहिले के जैसा ही है यहां पर 'देवोदे समुद्दे देववर देवमहावरा दो देवा एत्थ०' इस सूत्र के अनुसार देववर और देव महावर नाम
देवो नाम दीवे वटे' सूर्य रामास समुद्रने यारे माथी धेरीने हेव से નામ વાળે દ્વીપ આવેલ છે. આ દ્વીપ ગેળ છે. અને ગેળ વલય ના આકાર જેવા આકાર વાળે છે. આ દ્વીપ પણ સમચકવાલ વાળે છે. વિષમ ચકવાલા વાળે નથી. તેને સમચકવાલને વિખંભ અસંખ્યાત લાખ એજનને છે. અને તેની પરિધિ ત્રણ ગણી વધારે છે. આ શિવાય બાકીનું તમામ કથન આ વિષય સંબંધી પહેલાં કહ્યા પ્રમાણેનું છે. આ દ્વીપમાં દેવભદ્ર અને દેવ મહાભદ્ર એ નામ વાળા બે દે રહે છે. આ બન્ને દેવે મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણે વાળા છે. યાવત્ તેઓની સ્થિતિ એક પલ્યોપમની છે, દ્વીપને દેવેદ એ નામવાળા સમુદ્ર ચારે બાજુથી ઘેરેલ છે. આ સમુદ્ર પણ વૃત્ત-ગળ છે. અને ગોળ વલયના આકાર જેવા આકારવાળે છે. આ વિષય સંબંધી બાકીનું तमाम वर्णन पाहता हा प्रमाणेनुछ महीयां 'देवोदे समुद्दे देववर देव महावरा दो देवा एत्थ०' मा सूत्रनाथन प्रमाणे ११२ मने देव महा१२
જીવાભિગમસૂત્ર