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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१०५ अरुणदिद्वीपसमुद्रनिरूपणम् ८९९ वरमहाभद्रौ, सूर्यवरे समुद्रे-सूर्यवर सूर्यमहावरौ,-सूर्यवरावभासे द्वीपे, सूर्यवरवाभासभद्र सूर्यवरावभासमहाभद्रौ, सूर्यवरावभासे समुद्रे-सूर्यवरावभासबर सूर्यवराव. भासमहावरौ द्वौ द्वौ देवौ । 'दीवेसु भहनामा वरनामा होति उदहीसु' द्वीपेषु भद्रनामानौ वरनामानौ-उदधिषु देवौ भवतः। 'जाव पच्छिमभावं च खोदवरादीसु सयंभूरमणपज्जंतेसु' यावत्पश्चिमभावं च परत्वं च क्षोदवरद्वीपादारभ्य स्वयम्भूरमणपर्यन्त द्वीपसमुद्रेषु । 'बावीओ-खोदोदग पडिहत्थाओ' वाप्यो यावद् विलपंक्तयःक्षोदोदकपरिपूर्णाः वक्तव्याः। 'पव्वयकाय सव्व वइरामया' पर्वतकाश्च सर्वात्मना वज्रमयाः देवदीवे दो देवा महडिया देवभद्द देवमहाभदा एत्थ' सूर्यवरावभाससमुद्रात्परं यदस्ति-तदाह-'सूरवरावभासं णं समुदं देवो नाम दीवे सूर्यवरसमुद्र में सूर्यवरवर और सूर्यवर महावर ये दो देव रहते हैं सूर्यवरावभासद्वीप में सूर्यवरावभासभद्र और सूर्यवरावभासमहाभद्र ये दो देव रहते है सूर्यवरावभाससमुद्र में सूर्यवरावभासवर और सूर्यवरावभास महावर ये दो देव रहते हैं । 'जाव पच्छिमभावं च खोदवरादिसु सयंभूरमणपज्जतेसु बावीओ खोओद्ग पडिहत्थाओ पव्वयकाय सव्ववइरामया' क्षोदवरद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण तक के द्वीप और समुद्रों में वापिकाएं हैं यावत् विलपङ्क्तियां हैं और ये सब क्षोदोदक-इक्षुरस जैसे जल-से भरी हुई हैं' और जितने भी यहां पर्वत हैं वे सब सर्वात्मना वजमय हैं । 'देव दीवे दीवे दो देवा महिड्डिया देव भद्द देव महाभद्दा एत्थ०' सूर्यवरावभास समुद्र से आगे जो द्वीप और समुद्र हैं उनके विषय में यह कहा जा रहा है कि इस એ નામ વાળા બે દે રહે છે. સૂર્યવર સમુદ્રમાં સૂર્યવર અને સૂર્યવર મહાવર એ નામના બે દે રહે છે. સૂર્યવરાવભાસ નામના દ્વીપમાં સૂર્યાવરાવ. ભાસ ભદ્ર અને સૂર્યાવરાવભાસ મહાભદ્ર એ નામના બે દે રહે છે. સૂર્યવરાવભાસ સમુદ્રમાં સૂર્યવરાવભાસવર અને સૂર્યવરાભાસ મહાવર એ નામ १ मे हे। २९ छे. 'जाव पच्छिमभावं च खोदवरादिसु सयंभूरमणपज्जतेसु वावीओ खोओदगपडिहत्थाओ पव्वयकाय सव्व वइरामया' १२ दीपथी सन સ્વયંભૂરમણ પર્યન્તના દ્વીપ અને સમુદ્રમાં વાવ આવેલી છે યાવત્ બિલપંક્તિ હૈદદક અર્થાત્ શેરડીના રસ જેવા જલથી ભરેલી છે. અને આ જેટલા मडीया पताछ से अधा सवशते भय छे. 'देवदीवे दीवे दो देवा महिढिया देवभद्द देवमहाभद्दा एत्थ० ।' सूय १२१मास समुद्रनी 2011 दीपो भने समुद्री छे तेना समयमा सम वामां आवे छे 3-'सूरवरावभासं णं समुदं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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