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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. १०५ अरुणदिद्वीपसमुद्रनिरूपणम्
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द्वाराणि द्वराणां च परस्परमन्तरम् 'तहेव जोयणसहस्साइ" क्षोदोदकसमुद्र द्वारवत् - अबाधयाऽन्तरम् 'जाव अड्डो' यावदर्थः - यतश्च 'वावीओ खोदोदग पडिहत्थाओ - उपाय पव्वयगा सव्ववइरामया अच्छा' वाप्यो बिलपङ्क्तय क्षोदोदक परिपूर्णाः - उपपातपर्वतकाश्च सर्वात्मना वज्रमया अच्छा: श्लक्ष्णा यावत्प्रतिरूपाः तस्मात् - तथा 'असोगवीत सोगा य एत्थ दो देवा महड्डिया जाव परिवति' अशोक - वीतशोक नामानौ द्वौ देवावत्र महर्द्धिकौ महाद्युतिकौ० यावत्पल्योपमस्थितिक परिवसतः । 'से तेणद्वेणं जाव संखेज्जं सव्वं' तत्तेनार्थेन गौतम ! अरुणवरो द्वीपो० २ एवमुच्यते नाम, तथान्यदप्युत्तरम् - अरुणद्वीप इति शाश्वतं नामअपराजित नाम के चार द्वार हैं इन द्वारों का आपस में अन्तर 'तहेब संखेज्जाई जोयणसहस्साई' क्षोदोदक समुद्र के द्वारान्तर की तरह संख्यात लाख योजनों का है 'जाव अट्ठो' इस द्वीप का ऐसा नाम इस कारण से हुआ है कि यहां पर 'वावीओ खोदोदग पडिहत्थाओο' जितनी भी छोटी बडी वापिकाएं आदि जलाशय जगह जगह पर है उन सब में इक्षुरस के जैसा पानी भरा हुआ है उनमें उत्पात पर्वत हैं ये सब उत्पातपर्वत वज्रमय हैं अच्छ-आकाश और स्फटिकमणि के जैसे निर्मल हैं श्लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप है इस कारण से एवं 'असोगबीत सोगा एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवर्तति' अशोक और वीतशोक नाम के दो देव यहां पर रहते हैं ये महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले हैं और इनकी यावत् एक पल्योपम की स्थिति है इस कारण से 'से तेणद्वेणं जाव संखेज्जं सव्वं' इस द्वीप का नाम अरुणवरद्वीप ऐसा कहा गया है तथा इस द्वीप के ऐसा नाम होने में
વૈજયન્ત જયન્ત અને અપરાજીત એ નામેાવાળા ચાર દરવાજાએ છે. એ દરवालयो परस्पर अ ंतर 'तहेव जोयणसहरसाई' हो सभुद्रना द्वाराना अ ंतर प्रमाणे सांध्यात साम योजननु' छे. 'जाव अट्ठो' मा द्वीप' से प्रभानु नाम से अरथी थयेस छे ! अहींयां 'बावीओ खोदोदगपsिहत्थाओ.' त्यां સ્થળે સ્થળે જેટલી નાની મેોટી વાવા વગેરે જલાશા છે, સ્થળે સ્થળે છે. તે બધામાં શેરડીના રસ જેવુ પાણી ભરેલ છે. તેમાં ઉત્પાત પવ તા છે. આ બધા ઉત્પાત પર્વતા વજ્રમય છે. અચ્છ આકાશ અને સ્ફટિક મણિના જેવા निर्माण छे यावत् प्रति३य छे थे अराशुथी तथा 'असोगवीतसोगोय एत्थ दो देवा महिढिया जाव परिवसंति' अशी मने वीतशो मे नाभना में हेवे। અહીયાં નિવાસ કરે છે. તેએ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણા વાળા છે, અને તેઓની स्थिति यावत् मे पयोभनी छे से अराशुथी 'से तेणट्ठेणं जाव संखेज्जा
જીવાભિગમસૂત્ર