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________________ ८७४ जीवाभिगमसूत्रे समचक्रवालसंठाणसंठिए-विसमचक्कवालसंठाणसंठिए' हे भदन्त ! अरुणः खलु द्वीपः किं समचक्रवालसंस्थानेन-विषमचक्रवालसंस्थानेन वा संस्थितः इति प्रश्नः -भगवानाह-'गोयमा ! समचक्कवालसंठाणसंठिए-नो विसमचक्वालसंठिए' हे गौतम ! समचक्रवालसंस्थानसंस्थितः, न तु-विषमचक्रवाल० संस्थितः । 'केवइयं चक्कवालविक्खं० संठिए' कियता चक्रवालविष्कम्भेण-परिक्षेपेण च प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं तहा परिक्खेवेणं०' गौतम ! संख्येययोजनशतसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण तथा परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः । 'पउमवर वणसंड दारा' पद्मवरवेदिकया वनषण्डेण च सर्वतः संपरिक्षिप्तोऽरुणो द्वीपः । अस्य पूर्वादि दिक्षु विजय-वैजयन्त-जयन्ता-ऽपराजितानि वालसंठिए' हे भदन्त ! अरुणद्वीप क्या समचक्रवाल संस्थान वाला है ? या विषमचक्रवाल संस्थान वाला है ? उत्तर में प्रभु कहते हैंगोयमा ! समचक्कवालसंठाणसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए' हे गौतम । अरुणद्वीप समचक्रवाल संस्थान वाला है विषम चक्रवाल संस्थान वाला नहीं है 'केवइयं चक्कवालवि० संठिते' हे भदन्त ! इस समचक्रवाल संस्थान का विस्तार कितना है ? और कितना इसका परिक्षेप है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'संखेजाई जोयणसयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं संखेजाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! इसके समचक्रवाल संस्थान का परिमाण संख्यात लाख योजनों का है और इतना ही इसका परिक्षेप है 'पउमवर वणसंडदारा' यह अरुणद्वीप चारों ओर से पद्मवरवेदिका से और वनषण्ड से वेष्टित है इसकी चारों दिशाओं में विजय, वैजयन्त, जयन्त और णं भंते ! दीवे कि समचकवालसंठिए विसमचकवालसंठिए' भगवान् २०३६ दी५ શું સમચકવાલ સંસ્થાનવાળા અથવા વિષમચકવાલ સંસ્થાનવાળો છે? छ ? २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतभस्वाभीर छ -'गोयमा ! समचकवाल संठाणसंठिए नो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए' गौतम ! २५३दीप सभन्यास सस्थान पाण। छ. विषम या संस्थान पाणे नथी. 'केवइयं चक्कवाल वि०' भगवन् मा समन्यवास सस्थानी विस्तार से। छ ? भने તેને પરિક્ષેપ કેટલો છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે'संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं तहा परिक्खेवणं' गौतम ! તેના સમચક્રવાલ સંસ્થાનનું પરિમાણ સંખ્યાત લાખ એજનનું છે. અને તેને परिक्ष५ ५५५ मेटा छे. 'पउमवर वणसंड दारा' 20 म३९१ दी५ यारे मान्नु પદ્મવર વેદિકાથી અને વનખંડથી વીંટળાયેલ છે. તેની ચારે દિશાઓમાં વિજ્ય જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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