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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. १०२ क्षीरोदादिद्वीपसमुद्रनिरूपणम् ८२५ तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते घृतवरो द्वीपो घृतवरद्वीप इति अन्वर्थनामाऽभिधाने प्रश्नः भगवानाह-'गोयमे' त्यादि, 'गोयमा ! घयवरेणं दीवे तत्थ तत्थ०' हे गौतम ! घृतवरे खलु द्वीपे तत्र तत्र देशे तत्तद्देशस्य तत्तत्प्रदेशे 'बहवे खुड्डा खुडिओ वावीओ जाव घयोदग पडिहत्थाओ' बहवः क्षुद्राः क्षुल्लिका वाप्यः सरः सरः पङ्क्तयो यावत् बिलपङ्क्तयो घृतोदकप्रतिपूर्णाः सन्ति, तत्परिसरे बहव उत्पातपर्वताः-नियतपर्वतादयः सन्ति 'खडहडग०' खडहडकादयः 'सव्व कंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा' सर्वात्मना ते काञ्चनमयाः अच्छाः -आकाश-स्फटिकवन्निर्मलाः श्लक्ष्णाः-घृष्टाः मृष्टा:-नीरजस्काः-निर्मलाः -निष्पङ्काः-निष्कण्टकच्छाया:-सोयोताः-स प्रभाः-समरीचिकाः प्रासादिकाः दर्शनीयाः अभिरूपाः प्रतिरूपाः । 'कणय-कणकप्पभा एत्थ दो देवा महड्रिया' कनक-कनकप्रभौ द्वावत्र देवौ मह द्धिकौ महाद्युतिको महासौख्यौ महाबलौ महायही बात 'जाव अट्ठो' पद से सूचित की गई है. हे भदन्त ! इस द्वीप का नाम 'घृतवर' ऐसा किस कारण से हुआ है ? तो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! घयवरेणं दीवे तत्थ २ बहवे खुड्डा खुडिओ वावीओ जाव घयोदग पडिहत्थाओ' हे गौतम ! इस घृतवरद्वीप में जगह जगह पर अनेक छोटी बडी वापिकाएं हैं यावत् वे घृत के जैसे पानी से भरी हुई है उनमें 'उप्पाय पव्वया जाव खडहड' उत्पात पर्वत से लेकर खडहड तक के पर्वत हैं 'सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा' ये सब पर्वत सर्वात्मना अच्छ-स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं कणय कणयप्पभा एत्थ दो देवा महिडिया चंदा संखेज्जा' कनक और कनकप्रभ नामके दो देव यहां पर रहते हैं इनकी एक पल्योपम की आयु है ये सब महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले है. यहां चन्द्रादिक मा ५४थी सूयित ४२वामा मायेत छ. ई मापन् २॥ दीपनु नाम 'घृतवर' એ પ્રમાણે શા કારણથી કહેવામાં આવેલ છે? આના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહેछ ?–'गोयमा ! घयवरेणं दीवे तत्थ तत्थ बहवे खुड्डा खुड्डीओ बावीओ जाव घयोदगपडिहत्थाओ' हे गौतम ! म॥ धृत१२ दीपमा स्थणे स्थणे मने નાની મેટી વાવ છે યાવત્ તે બધી વાવે વૃતના જેવા પાણીથી ભરેલ છે. तभा 'उप्पायपव्वया जाव खडहड' पात ५ तथा सन ५९ सुधीना ५। छ. 'सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा' मा सा तो सर्वामना २५२७-२१२७ यावत् प्रति३५ छे. 'कणय कणयप्पभा एत्थ दो देवा महिइढिया चंदा संखेज्जा' ४४ अने ४४प्रम नामनामे हेवे। सही र छे. તેમનું આયુષ્ય એક પલ્યોપમનું છે. તેઓ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણ વાળા છે. जी०१०४ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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